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________________ ( २३ ) श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों से यह स्पष्ट है कि वीर निर्वाण संवत् ६८० विक्रम संवत् ५१० ) के आस पास जैन संघ वल्लभीपुर में देवर्धि गणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में एकत्रित हुआ। अब तक जो शास्त्र य ज्ञान प्राचीन परम्परा से बिखरा पड़ा था उस का कई कारणों से लोप होना भी प्रारम्भ हो गया था । उस का विस्तार रूप से फैनाव सर्वथा संभव न था । अतः संघ का ध्यान इस ओर गया कि श्रागम और अन्य साहित्य को एकत्र ग्रथित करना परमावश्यक है । ऐना करने से यह ज्ञान भविष्य के लिये सुचारु रूप से सुरक्षित भी रह सकता था और इस का सार्वत्रिक प्रचार भी पूर्ण रूप से हो सकता था । अतः सत्र की अनुमति से बिखरे हुए श्रागम तथा अन्य साहित्यिक ज्ञान को एकत्र ग्रथित किया गया ! दिग् म्बर सम्प्रदाय का साहित्य इस साहित्यके बहुत पश्चात् लिखा गया है । हबत नं.चे लिखे उदाहरण से स्पष्ट है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मन्तव्य के अनुसार जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थकर पहिले देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से आए पश्चात् इन्द्र की आज्ञा से हरिनेगमेसा देवता ने उन्हें क्षत्राणी त्रिशला के गर्भ में रखा । यह वर्णन कई श्वेताम्बर ग्रन्थों में आता है इसका विस्तार पूर्वक वर्णन पढ़ना हो त! पाठक कल्पसूत्र में पढ़ सकते हैं । दिगंबर संप्रदाय के ग्रन्थों में इस प्रकार की घटना का कहीं उल्लेख नहीं और न ही दिगंबर लोग इस बात को मानते ही हैं | श्वेतांबरों के मत की प्रमाणिकता के लिये मथु के कंकाली टीले से एक शिला मिली है जिस पर भगवान् महावीर स्वामी के गर्भ हरण का बड़ा सुंदर चित्र खुदा हुआ है । लिपि तत्व के धुरंधर विद्वानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह शिला लेख ईस्वी सन् से एक शताब्दी पहले का खुदा हुआ है । इस उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्वेतांबर साहित्य को प्राचीनता भी श्वेतांबर सम्प्रदाय की प्राचीनता पर बड़ा 2 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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