SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६३ ) - - दोनों के मन्तव्यों के संक्षिप्त निर्देशन से पाठक स्वयं सैद्धान्तिक भिन्नता को समझ जाएंगे। दूतवाद... .. . ... द्वैतवादियों का कहना है कि यदि हम कहें कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है तो इस निषेधात्मक वाक्य से ही ईश्वर का होना सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार अद्वैत शब्द से ही द्वैतवाद की सिद्धि हो जाती है । ज्ञान सदैव. द्वैत है क्योंकि वह ज्ञाता और ज्ञ य में रहता है। दोनों का अन्योन्य प्रित सम्बंध है । द्वैतवादियों की मान्यता के अनुमार जीवात्मा और परमात्मा ये दोनों भिन्न शक्तियाँ हैं। उन का कहना है कि परमात्मा जीव के ज्ञान का विषय है । अद्वैतवाद । अद्वैतवादियों का कहना है कि यदि परमात्मा को प्रात्मा के ज्ञान का विषय मान लिया जाए तो यह आवश्यक है कि परमात्मा आत्मा के समक्ष विषयरूप हो कर उपस्थित होगा। यदि वह विषय है सो प्रश्न यह उठता है कि वह अात्मा के अंतर में किस रीति से रहता है ? विषय और विषयी एक लकड़ी के दो छोरों के समान पृथक् २ होते हैं । एक छोर का दूसरे छोर के अंतर में श्राना सर्वथा असंभव है। अतएव परमात्मा को जीवात्मा का विषय न मान कर जीवात्मा का अंतरतम अात्मा मानना चाहिये । अद्वैतवाद की मान्यता के अनुसार जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं । उन का कहना है कि 'जीवो ब्रह्म केवलम' अर्थात्- बीव साक्षात् ब्रह्म ही है। संसार में ब्रह्मरूप एक ही शक्ति है जिस के रूप हमें अनेक दिखाई देते हैं। जैसे जल एक हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy