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इम कथानक में अनेकान्तवाद का सार याजाता है । इस से यह भी भलीभाँति स्पष्ट है कि किसी भी वस्तु को यदि हम एकान्त दृष्टिं से देखेंगे तो हमें उस के पूर्ण स्वरू। का ज्ञान नहीं हो सकता। प्रत्येक वस्तु का ज्ञान पूर्ण रूप से करने के लिये अनेकान्त दृष्टि को श्रावश्यकता है और अनेकान्त दृष्टि अनेकान्त दर्शन के ज्ञान से ही मिल सकती है ।
॥ एक ही वस्तु में दो विरोधी धर्म ॥
अनेकान्तवाद के प्रतिपक्षियों ने यह कह कर कि एक ही वस्तु में दो विरोधी धर्म नहीं रह सकते अनेकान्तवाद का प्रत्याख्यान करने का प्रयत्न किया किन्तु वे इस में सफल नहीं हो सके। हम देखते हैं कि संसार के सारे पदार्थ अनेकान्त नक या अनेक धर्मात्मक हैं । सागरदत्त नाम का एक ही पुरुष किसी का पिता, किसी का पुत्र, किसी का पति, किसी का मामा और किसी का नाना आदि होता है। जिस समय पुत्र के द्वारा उस को पिता कह कर पुकारा जाता है उम समय वह अन्य पुत्र, पति, मामा, और नाना आदि अनेक विरुद्ध धर्मों को भी धारण करता है इससे यह स्पष्ट है कि वह अनेक विलक्षण कार्यों के अस्तित्व को रखते हुए अनेक धर्मात्मक है। सागरदत्त न केवल पिता ही है, न केवल पुत्र ही है और न केवल पति ही है किन्तु भिन्न २ अपेक्षा से वह सब कुछ है। दार्शनिक विद्वान् माननीय पं. माणिक चन्द्र जो ने अनेकान्तवाद का विश्लेषण बड़े ही सुन्दर और स्पष्ट शब्दों में इस प्रकार किया है:-*
"संयोग सम्बन्ध से पर्वत में अग्नि है किन्तु निष्ठत्व सम्बाध से
* देखो जैन दर्शन का स्याद्वादाङ्क पृष्ठ ११० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com