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था। आदर्श जीवन की बुनियाद भी उन्होंने धर्म पर ही रक्खी और सांसारिक बन्धनों से मुक्ति का मार्ग भी उन्होंने धर्म को ही बताया । अपने सारे जीवन के क्रियाकलाप में उन्हों ने प्रधान स्थान धर्म को दिया और उस के पालन करने के लिये सर्वस्व तक बलिदान करने की शिक्षा दी । वे भगवान् से यहां तक प्रार्थना किया करते थे कि परमात्मा धन दौलत भले ही वापस लेले, यमराज भले ही उन के प्राण जल्दी ही लेले किन्तु उन की बुद्धि धर्म से कभी विमुख न हो । धर्म से विमुख होने की अपेक्षा वे मृत्यु श्री अधिक अच्छा समझते थे । धर्म रहित जीवन की उन्हों ने पाशविक जीवन से तुलना की । पूर्ण रीति से धार्मिक जीवन व्यतीत करने वाले को उन्हों ने परमात्मा तक की उपाधि से अलंकृत किया। सारांश यह कि हमारे पूर्वजो ने धर्म को सर्वोपरि स्थान दिया ।
॥ धर्म के नाम पर ॥
प्रश्न यह है कि क्या धर्म न्याय की कसौटी पर घिस कर अपने खरेपन और सार्थकता को प्रकट कर सका ? जिस महती श्रद्धा और प्रेम से मानव ने धर्म की पूजा की थी क्या धर्म ने उस को उस का उचित ही फल दिया ? क्या वस्तव में धर्म ने मानव जीवन को आदर्श बनाया ? क्या वास्तव में धर्म ने संसार को सन्मार्ग दिखाकर उस का कल्याण किया ? क्या संसार के लोग धर्म का पालन करके भयानक आपत्तियों और घोर कष्टों से मुक्ति पास के ? क्या वास्तव में मानव ने धर्म की तरणी पर बैठकर संसार सागर को पार किया ! क्या धर्म का पालन करने से मानव वास्तव में परमात्मपद को प्राप्त हुआ ! संसार का इतिहास इन सब प्रश्नों का उत्तर निषेधरूप में ही देता है । योरोप और एशिया संसार में सर्वत्र धर्म के नाम पर बड़े २ युद्ध हुए
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