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अनेकान्तवाद
अनेकान्तवाद जैन दर्शन की अपनी विभूति है और जैनदर्शन की एक विशेषता है। प्राचार्य अमृतचन्द्र ने तो अनेक.न्तवाद को जैनागम का जीव या बीज बतलाया है। वे कहते हैं कि जिस प्रकार जीव के बिना मृतक शरीर किमी काम का नहीं होता इसी प्रकार अनेकान्तवांद के बिना जैनागम भी सर्वथा निरर्थक और निस्सार है । यही कारण है कि जैनधर्म या जैन दर्शन का जो महत्व है वह अनेकान्तवाद के सिद्धान्त के कारण ही है । अनेकान्तवाद एक महान् दर्शन है । यह ऐसा दर्शन है जो संसार के अन्य दर्शनों के सैद्धान्तिक कलह को मिटाकर उन में समन्वय कराता है। और उन के बीवन को पूर्ण और सत्यमार्ग की और प्रेरित करता है । संसार में व्यापकरूपसे फैली हुई असहि. ष्णुतारूपी विष का मूलकारण साम्प्रदायिक रोग है और अनेकान्तवाद उस रोग की निवृत्ति के लिये अमोघ औषध है। दूसरे की अच्छीसे अच्छी बात को या सिद्धान्त को भी बुरा बताना और अपने खोटे मन्तव्य का भी समर्थन करना, इस वातावरण की बननो साम्प्रदायिकता है। उदारता और विशालता साम्प्रदायिता के पास तक नहीं फटकती। वह कटुता और विद्वेष फैलाती है । उस कटुता और विद्वेष को दूर करके अनेकान्तवाद माधुर्य और मैत्रीका संचार करता है। अनेकान्तवाद का सूर्य, साम्प्रदायवाद, मतान्धता या धर्मान्धता के अन्धकार को दूर कर संसार को सुखद ज्योति का प्रकाश देता है। यह सत्य को असत्य और असत्य को सत्य कहने वालों के भ्रम को निवारण करता
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