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"जीवन का प्रधान लक्ष्य शान्ति है और शान्ति का एकमात्र उपाय अहिंसा है। अतः यदि तुम जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हो तो उसके एकमात्र साधन अहिंसा धर्म को कभी मत भूलो।"
जब हम सब शान्तिपूर्ण जीवन बिताना चाहते हैं तो हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम दसरों को भी शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करने दें। दूसरों के जीवन पर आक्रमण करके अपने लिये शान्ति की इच्छा करना वृथा है क्योंकि हिंसा की प्रतिक्रिया अवश्य होती है
और उसके होने से जीवन में अशान्ति का पाना स्वाभाविक है । अतः शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिये अहिंसा मार्ग ही श्रेष्ठतम है । इस पर चलने से जीवन में शान्ति का ही साम्राज्य मिलता है ।
जैन धर्म की अहिंमा में एक और बड़ी विशेषता हमें मिलती है । किसी का मन्तव्य है कि पशु को न मारना अहिंसा है। कोई कहता है मनुष्य को न मरना अहिमा है किन्तु जैन धर्म तो प्राणीमात्र को मन, वचन और कर्म से न मारने को अहिंसा मानता है । इस प्रकार जैन धर्म की अहिंसा प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भाव रखने का उपदेश देती है।
_ जैन धर्म में प्राणी पाच प्रकार के माने जाते हैं । एक इन्द्रिय वाले, दो इन्द्रियों वाले, तीन इन्द्रियों वाले, चार इन्द्रियों वाले और पाञ्च इन्द्रियों वाले । एक इन्द्रिय वाले जैसे फल । फल के केवल स्पर्शेन्द्रिय होती है। दो इन्द्रियों वाले शंख, सीप और लट आदि । इनके केवल काया और मुख दो इन्द्रियें होती हैं। तीन इन्द्रियों वाले लीख, कीड़ी, खटमल आदि । इनके काया, मुख और नासिका तीन इन्द्रियें होती हैं । चार इन्द्रियों वाले मक्खी, मच्छर और वृश्चिक आदि। इनके काया, मुख, नाक और अांख ये चार इन्द्रियें होती हैं ।
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