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________________ (१.६) है कि धरती को जोतना चाहिये : अतएव वह खेती के काम को धार्मिक बतलाता है।" ____ "हिन्दुओं का गाय के लिये प्रतिष्ठा प्रसिद्ध है । यह भी निश्चित है कि प्राचीन काल के पारसी लोग भी उसका बहुत आदर करते थे। तो फिर क्या यह कहना अयुक्त नहीं कि गोमेध का अर्थ गोवध है जबकि भाषा और भाव दोनों का समुचित विचार रखते हुए उसका अर्थ हम 'धरती का जोतना कर सकते हैं।" इस उद्धरण से पाठकों को भलीभाँति पता चल गया होगा कि किस प्रकार हिंसा के विरोधी वैदिक विद्वानों ने हिंसापरक शब्दों का अर्थ अहिंसापरक किया और वैदिक यज्ञों का प्रनिगदन करते हुए भी उन यज्ञों को अहिंसामय सिद्ध किया । निस्सन्देह यह प्रयन सराहनीय था । श्रामिषाहार करने वाले लोगों पर है। प्रचार का अच्छा प्रभाव पड़ा और बहुत से लोगों ने आमिषाहार का त्याग भी किया। इसके विपरीत कुछ अन्य पौराणिक विद्वानोंने वेदोंके अथको बदलना ठीक नहीं समझा और उन्होंने मांसपरक शब्दों का अर्थ मांसपरक ही किया किन्तु उन मांसपरक हिंसात्मक यज्ञों का विधान कलियुग में वयं बनाया । वेदों. के नाम पर या धर्म की आड़ लेकर होने वाली हिंसाको समाज से रोकने के लिये और 'अहिंसा धर्म का प्रचार करने के लिये यह दूसरा कदम था। ब्रह्मपुराण और अादित्यपुराण आदि बहुत से वैदिक ग्रंथों में हिंसात्मक यज्ञों का कलियुग में निषेध किया है। अस्तु, उपयुक्त विश्लेषण से पाठकों को यह स्पष्ट हो गया होगा कि वैदिक सम्प्रदायमें हिम का समर्थन करने वाले और निषेध करने वाले दो दलों का संघर्ष बड़े जोर से चलता रहा है और दोनों अपने मन्तव्य के प्रचार में सफल : रहे है । उसी प्रचार की परम्परा का रूप हम अाज भी वैदिक समाज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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