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में-प्रणालिकाओं में फर्क रहा है, उसी प्रकार उसके हेतुओं में भी। शिक्षण का हेतु
___भारतवर्ष आध्यात्मिक प्रधानता रखने वाला देश हमेशा से रहा है । ईश्वर, पुण्य, पाप आदि की भावना को सामने रख कर ही उसकी प्रत्येक प्रवृत्ति आज तक रही है। और यही उसकी संस्कृते है। व्यक्तिगत स्वार्थ, लोभ आदि के कारण बुरा काम करते हुए भो, उसको बुरा समझना, एवं पाप समझना, यह ' भारत की संस्कृति का मुख्य लक्षण रहा है।
भारतीय शिक्षण के हेतु में भी आध्यात्मिकता की भावना ही प्रधान रही है। “सा विद्या या विमुक्तये" "ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः " ये उस सिद्वान्त के प्रतीक हैं। "वही विद्या, विद्या है जो मुक्ति के लिो साधनभूत हो" तथा "ज्ञान-विद्या के बिना मुक्ति नहीं होती" यह दिखला रहा है कि शिक्षण में हमारा हेतु आत्मकल्याण का था-ईवर के निकट पहुँचने का था और उसी हेतु के प.रणाम-स्वरूप हमारे सामने यह वर्तव्य रक्खा गया था कि “मा देवा भव," "पतृदेवो भव",
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