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शेष विद्या प्रकाश ::
'संसार की विषमता'
क्वचिद् विद्वद्गोष्ठी क्वचिदपि सुरामत्वकलहः क्वचिद् वीणावादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितम् । क्वचिन्नारी रम्या क्वचिदपि जराजर्जरवपुः
न जाने संसारः किममृतमयः किं विषमयः ।।२९।। ____ अर्थ-अच्छे अच्छे निर्णयात्मक बुद्धि वाले महापुरुष भी इस संसार की गति को नहीं जान सके कि यह संसार अत्यन्त सुखमय अर्थात अमृत से भरा हुआ है या अत्यन्त दुःखमय अर्थात् दुःख, दारिद्रय शोक, संताप रूपी विष से भरा हुआ है, वह इस प्रकार संसार के एक तरफ तो विद्वत् पंडित और धार्मिक पुरुषों की धर्म गोष्ठी हो रही है, तो दूसरी तरफ शराब की बोतलें तथा मांस का भोजन पेट में डाला जा रहा है। तीसरी तरफ स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने वाला संगीत चल रहा है, जिसमें हजारों स्त्री पुरुष परमात्मा की धुन में लगे हुए हैं तो चौथी तरफ किसी की अकाल मृत्यु होने पर ग्राम की जनता करुण रुदन करती हुई श्मशान तरफ जा रही है।
किसी के यहां रंग भवनों में युवती स्त्रियों के श्रृंगार का उपभोग हो रहा है तो अन्यत्र वृद्धत्व प्राप्त स्त्रियों को देखकर पुरुषों को उदासीनता आ रही है।
सचमुच संसार क्या है ? परमात्मा जाने ।।२६।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com