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________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: १२३ क्या भरोसा देह का विनस जाय छिन मांही । श्वास श्वास सुमिरिन करो और जतन कछु नाही ।। लक्ष्मी छाणा बेचती भीख मांगतो धनपाल । अमर मरतां मैं सुण्या भलो मारो ठन ठन पाल ।। राजा राणी को माने उसमें अानंदघन को क्या ? राजा राणी को नहीं माने तो आनन्दघन को क्या ? माखी मारु बाकस तोडू तोडू काछ सूत । बे मुठिये पापड़ तोडू खरो वीर रजपूत ।। मां का देखा बहिन का देखा देखा सासु साली का । फिर फिर के सब का देखा न देखा घर वाली का। जेरो वाजे वायरो पुठ दिजे तेड़ी । बैठो दूजे बकरी उभे दुजे ऊटडी ॥ नई मजरी खाट न चए टापरी । भेसडिया दो चार दूझे बापड़ी ॥ बाजरी रोटा दही में घोलणा । इतरा दे करतार तो फिर नहीं बोलणा ॥ स्नान करे सपाटा करे जनेऊ घाले गांटू । जनेऊ घाले धन मिले तो रूपों बांधे रांडू । उनु पीये डु पिये आ वणीयाणी काली । मुहपत्ति बांध्या धन मिले हुँ बांधे राली ॥ श्याम वरण मख उज्जवल केता ? रावण सिर मंदोदरी जेता । हनुमान पिता कर लेश । तो राम पिता कर देश ॥ (उड़द) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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