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________________ बिजली का प्रवाह जारी किया जाता है जबकि मानव शरीर में आत्मा या जीवनी शक्ति और शरीर साथ-ही-साथ आरंभ से ही रहते हैं और शरीर का परिवर्तन सर्वदा साथ-साथ ही होता रहता है। ह्रास या वृद्धि भी साथ-ही-साथ होती है। इससे हम दोनों को अलग-अलग अनुभूत नहीं कर पाते। केवल मृत्यु के समय ही ऐसा लगता है कि सारे शरीर की बनावट ज्यों-की-त्यों होते हुए भी जो चालू शक्ति थी वह अब नहीं रही। जैसे बिजली के चलते यन्त्र से बिजली का आवागमन हटा लिया जाय तो वह यन्त्र एक दम कार्य बंद कर देगा। फिर भी बिजली का यन्त्र स्थिर या स्थायी दीखता है जबकि हाड़-मांस का बना शरीर तुरन्त सड़ने गलने लगता है। इन हाड़-मांस को निर्माण करने वाली वर्गणाओं का असर एवं गुण ही ऐसा है जिसके कारण यह सब होता है । हाड़-मांस ही क्यों, निर्जीव धातुओं और रसायन (Chemicals) के साथ भी ऐसी कितनी वस्तुए हैं जो जल्दी नष्ट होने वाली (perishable) होती हैं और कुछ काफी स्थायी। मानव शरीर जिन धातुओं और रसायनों से बना है उनकी बनावट ऐसी है कि वायु (Atmosphere) की वर्गणाओं के साथ मिल कर जीवन रहने पर उनमें परिवर्तन चालू । रहता है जब कि जीवन रहित हो जाने पर वे ही ऐसी वस्तुओं में परिणत हो जाती हैं जिन्हें हम दुर्गन्धिमय या सड़ा गला कहते हैं। पर होता सब कुछ वर्गणाओं की बनावट, आपसी क्रिया-प्रक्रिया एवं गुण इत्यादि के कारण ही है। यह सब कुछ स्वाभाविक रूप से अपने आप ही आपसी क्रिया-प्रक्रिया द्वारा होता है। ____ मनुष्य का 'मन' और 'शरीर' ही मनुष्य के स्वभाव को निर्मित या निश्चित करते हैं। मन की गति और हलन-चलन एवं शरीर की गति और हलन-चलन के द्वारा ही मनुष्य का प्राचार, व्यवहार, क्रियाकलाप, चाल-चलन, कार्यक्रम, अच्छाई-बुराई, साधुता-दुष्टता, शांततातीव्रता, धैर्यता, अव्यवस्थितता, क्रोध, क्षमा, वैर-मेल, हंसी-दुख, प्रसन्नता-अवसाद, मिष्ठता-कटुता इत्यादि सब कुछ बनते या होते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035254
Book TitleSharir Ka Rup aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandprasad Jain
PublisherAkhil Vishva Jain Mission
Publication Year1953
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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