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________________ उनके शरीरों की बनावटों के अनुरूप ही होते हैं उसी तरह किसी दूसरे पशु जैसे कुत्ता, बिल्ली, हिरन अथवा कोई पक्षी, छोटे-छोटे कीट पतंग, पेड़ पौधे इत्यादि सभी अलग-अलग अपने-अपने अंगों की बनावट या शरीर की रूप रेखा आकृति और गठन के अनुसार ही कर्म कर सकते हैं और इसी कारण हरएक का अलग-अलग निश्चि स्वभाव है। मनुष्य शरीर में भी अवयवों की बनावट तथा मन, बुद्धि इत्यादि की वर्गणा-निर्मित रूपरेखा के ऊपर ही किसी भी व्यक्ति के कार्य संपादन की शक्ति, योग्यता, क्षमता एवं तौर-तरीका या उस अवयव और अंगोपांग के हलन-चलन निर्भर करते हैं। किन्हीं भी दो व्यक्ति की भीतरी या बाहरी समानता उनकी वर्गणाओं के संगठन की समानता के कारण ही है। कोई दो मानव जितने-जितने एक दूसरे के समान होंगे उनकी हर एक बातें, कार्य-कलाप, आचार व्यवहार इत्यादि सब उसी परिमाण में समान या प्रासमान होंगे। बाहरी रूप और आकृति अंदरूनी बनावटों से भिन्न नहीं। सब एक दूसरे के फलस्वरूप एक दूसरे में . "गुण-गुणी" की तरह एक हैं। इसमें अपवाद (exception) की गुंजाइश नहीं। प्रकृति के नियमों या कार्यों में अपवाद नहीं होते; वहां तो सब कुछ स्वाभाविक और निश्चित रूप से ही घटित होता है। शरीर को बनाने वाली “वर्गणाओं" के अतिरिक्त 'मन' (Mind) 'और मस्तिष्क (Brain) की “वर्गणाए" भी अलग होती हैं और उनकी अपनी विशेषताएँ और गुण भी अपने विशेष तौर के होते हैं। इन "मनोवर्गणाओं" की बनावट के अनुसार ही "मानव-मन" की हरकतें, मनोदेश में हलन चलन या मन की हर एक बातें, विचार या काम होते है। "पद्धल" तो निर्जीव है और पुदगल की रचना भी निर्जीव ही है। स्वयं विजली के यन्त्रों की तरह ये रचनाएँ कुछ नहीं कर सकतीं, जबकि उनमें विद्युतप्रवाह या जीवन न हो। विद्यु तयन्त्रों में और मानव शरीर में भेद केवल यह है कि इन यन्त्रों का निर्माण करके उनमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035254
Book TitleSharir Ka Rup aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandprasad Jain
PublisherAkhil Vishva Jain Mission
Publication Year1953
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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