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________________ ( १० ) चारों तरफ तीन चार पुरुष बैठकर किसी मृतात्मा के रूप का ध्यान करते हैं तब उस मृतात्मा का जीव उन चारों में से किसी एक पर आया हुआ कहा जाता है जब वह उस मृतात्मा के सरीखे काम करने या बातें करने लगता है। यह मृतात्मा स्वयं नहीं आती यह तो उसकी रूपाकृति का एकाग्रध्यान करने से एक वर्गणात्मक रूप का निर्माण हो जाता है जो किसी खास व्यक्ति पर अधिक प्रभावकारी होने से प्रत्यक्ष फल प्रदर्शित करता है जैसा ऊपर कह चुके हैं—वैसे शरीर एवं रूप का जो कर्म होना चाहिए या हो सकता है वही वह व्यक्ति अपने अपने अंदर विद्यमान जीवनी शक्ति के सहारे करने लगता है। यही इस विद्या का गूढ़ रहस्य है। पुद्गल की बनावट तो निर्जीव है। इस शरीर में जो कुछ भी संज्ञान ओर चेतना पूर्ण हलन चलन या अनुभव होते हैं या क्रियाए होती हैं वे सब आत्मा की विद्यमानता के फलस्वरूप ही हैं। आत्मा की चेतना और पुद्गल का रूपी शरीर दोनों के मिलने से ही सारे कार्य कलाप होते हैं। 'जीव' की अवस्थिति के वगैर कुछ नहीं हो सकता । 'प्रेत बाधा' या 'भूत बाधा' जिस भावनात्मक रूप का निर्माण वर्गणाओं के संगठन द्वारा करती है वह भी उस व्यक्ति में जीवनी या उसके असली शरीर में रहने के कारण ही प्रभाव करता है। निर्जीव में यह बात नहीं हो सकती। ___मानव शरीर के अन्दर जितनी वर्गणाएं हैं उन्हें प्रधानतः तीन भागों में विभक्त किया गया है। “कार्मणवर्गणा", "तेजस वर्गणा" एवं "औदारिक वर्गणा"। मनुष्य का हर एक कार्य, व्यवहार, आचरण इन वर्गणाओं को अलग-अलग बनावटों द्वारा ही निर्मित एवं परिचालित होता है। किसी एक कर्म को उत्पन्न करने या क्रियाशील बनाने वाली ------------------ * इनकी जानकारी के लिए तत्वार्थाधिगम सूत्र, द्रव्य संग्रह जैसे जैन सिद्धान्त ग्रन्थों का मनन करें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035254
Book TitleSharir Ka Rup aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandprasad Jain
PublisherAkhil Vishva Jain Mission
Publication Year1953
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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