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________________ ( ६ ) चित्र देखना और ध्यान करना शुभोत्कारक है। इतना ही नहीं जब कोई व्यक्ति किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति के रूप का ध्यान करता है तो वर्गणाओं का उसी रूप में निर्माण होकर हमारे अन्दर उन रूपाकृतियों का भान कराता है। प्रेत या भूत बाधा भी इसी क्रिया (Phenomena) के फलस्वरूप है। जब किसी डर, भय या आशंका इत्यादि के कारण एक जबरदस्त भावना किसी व्यक्ति के मन के अन्दर सहसा या समय के साथ बैठते-बैठते बैठ जाती है तब वह उसी रूप का दर्शन और ध्यान इतनी एकाग्रता एवं मजबूती से करने लगता है कि वर्गणात्मक रूपों का निर्माण स्वयं उसके शरीर की गठन को एक दूसरे रूप के शरीर के समान चारों तरफ से घेर और जकड़ लेते हैं। यह वर्गणात्मक रचना दृश्य नहीं होने से हम उस शरीर को वा उसके प्रभाव को देख नहीं पाते हैं। पर चूंकि उस व्यक्ति के शरीर में आत्मज्योति या जीवनी रहती है. इससे यह ऊपर से ढकने वाला शरीर क्रियाशील हो जाता है। दुष्ट या बुरे भावों से दुष्ट कर्मी या बुरी आकृतियां एवं शुभ भावनाओं से शुभ प्राकृतियों का निर्माण होकर उनका कार्य या असर इस शरीर के अंगों को उसी विशेष प्रभाव में इस तरह प्रचालित करता है कि दोनों के सम्मिलित क्रिया-कलाप हम उस व्यक्ति की स्वाभाविक क्रियाओं से भिन्न पाते हैं; और तब कहा जाता है कि उस व्यक्ति के ऊपर भूत-बाधा या किसी गुप्त शक्ति का प्रभाव हो गया है। ऐसी हालत में मन की एकाग्रता या तीव्र भावों की प्रबलता को तोड़ने या बाधा देने से लाभ देखा जाता है। इससे यह भी साबित होता है कि वर्गणा निर्मित ऐसे शरीर भी हो सकते हैं जो हमारी आंखों से अदृश्य, प्रछन्न, या गुप्त रहे; पारदर्शक वस्तुओं की बनावट के समान दिखलाई न दें फिर भी उनमें आत्मा हो, जीवन हो और वे सचमुच इसी लोक में या कहीं भी घूमते-फिरते और जीवित हों, उनकी अवस्थिति (existance) हो; जैनशास्त्रों में भी ऐसे व्यन्तर देवों का होना कहा गया है। आधुनिक समय में एक गोल मेज के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035254
Book TitleSharir Ka Rup aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandprasad Jain
PublisherAkhil Vishva Jain Mission
Publication Year1953
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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