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________________ [ ३६ ] ॥ जीर्णोद्धार की व्यवस्था ॥ १ वनारस नगरौमें श्रीभद्दयनीजीका तीर्य ७ वें भगवान के कल्याणकका स्थान है राजा वकराजजौका बनाया भया गंगाजौके तटपै पकाघाट शिखरबंद मन्दिर धर्मशाला लाखों रुपये की लागतको इमारत बनोहै अब कालके दोषसे गंगाने काट करना सुरु कराहै आधा घाट काट कर लेगइ है बड़ा अनर्थ भया है इसका जीर्ण उद्धार वगैरा बहोत जलदो बन्दोवस्त श्रीसंघको करना मुनासिव है जोसे तीर्थ रह जाय अगर नहीं बन्दोवस्त होगा कुछ तो थोड़े वरसों में तीर्थ विछेद होजायगा गङ्गा सब लेजायगी फिर पछतावा होगा अभी तो थोड़े द्रव्यके खरचसे बन्दोवस्त हो सकताहै श्रीसंघ बिलकुल ख्याल करता नहीं है निश्चिन्तहै इसे समस्त श्रीसंघसे बिनती है संघ सामर्थ है सबकार्य करनेको सो उद्दम होना उचित है और तीर्थ भौ बहोत जीर्ण होगये हैं पर १ वरस बाद भी जीर्ण उद्धार होनेसे इतना नुकसान नहीं मालम होताहै इस तीर्थका जीतनौ देरौसे बन्दोवस्त होगा उतना नुकसान दिन दिन बड़ता जायगा खरच वगैरेका इस बातको खव गौर करे धरम रागसें। और लोग नाम करमके भांगेसे जहांपर अनेक मंदिरजी बने हैं वहांपर और नये मंदिर वनवाते हैं परन्तु जो तीर्थ वौछेद है वा तीर्थ. प्राचीन वने भए जीर्ण होगएहैं स्थान अत्यन्त उसका जीर्ण उद्घार वगैरा नहीं कराते हैं पुण्यवानोंने तो लाखो रुपए खरच करके सौर्य प्रगट करे स्थान बनाये थे प्रबके श्रीसंघसे उसको साचवनौसार संभार तक नहीं हो सकती है भगवान्की पूजा सेवा वगैरा होतीहेके नहीं होतीहै बड़े पाचर्यको वात है कैसा धरम राग श्रावकों का होता जायके कालके दोषसे देवगुरु धरमको भगतो कम होती जाय जैसा ख्याल चिन्ता चितमें है कोई उपाय चलता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035250
Book TitleSarv Tirtho Ki Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Chhajed
PublisherShitalprasad Chhajed
Publication Year1893
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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