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________________ [ ३५ ] चरण कि कथलोंकी पंखड़ौ खंडीतकर दी है अधिष्ठाताको मूर्ती बिलकुल खंडीत कर दी है कोई धनी नहीं वहां जिसका डर माने इच्छा मुजब खेल करते हैं सहर में डिगम्बरियोंका मंदिर है अन्यमतियोंका तीर्थ है मेला १ सालके साल होता है अपना कुछ नहीं है वहां १ मकान बना भया पक्का धनपतसिंघजी ने तीन हजार में लिया था मंदिरजौ बनानेको बरस २० भए होगे मंदिर वगैरा कुछ बनाया नहीं मकान गिरकर मैदान होगया है जमीन अब सौवरूपएको वि कती है इस ईरादेको गौर करना मुनासिव है कैसा धरमराग लोगों का रह गया है राजा भदावरका राज्य है यमुना नौचे वहती है रस्ता सकुरावाद तक रेलहै बहांसे को ० ६ खुसको बैलगाड़ी पर सोरौपुर बटेश्वर इस नाम से प्रसिद्ध है यहां २२ वें भ० के कल्या० २ भए हैं । Nex ७ श्रीअष्टापदजीका तौर्थ उत्तर दिशा में हैं पता नहीं मौलता कहां है मगर भूगोल हस्तामलकके कितावमें ऐसा लिखा है के उत्तराद मोठा समुद्र है उसके बौचमें १ पहाड़ है उसपर १ मंदिर सोने ऐसा चमकता दिखाई देता है उसको जैनौ लोग अष्टापदका तौर्थ कहते हैं ऐसा लिखा देखा पर उस लिखने पर बिलकुल सरदहना नहीं करते हैं शास्त्र के लिखनेको सुनकर वहां बड़े बिस्तारसे गंगा पहाड़ के चारों तरफ घुमतौ है नेत्रों को ईतो सकतौ नहीं है जो इतने दूरका पदार्थ देख सके वा टूरवींन के सौसेको वौ इता बल नहीं है उसके महाजसे देखने में आवे सैकड़ो कोसको वस्तु तथा इस भरत में मौठा समुद्र वौ नहीं है ऐसे २ अनुमान से उस लिखने को सही नहीं समझ सकते हैं (कयासौ वातको) और तौथ को फरसना जो बौछेद है तौवौ खेत्र आसरौ होती है सरीर करके इस तौर्थको फरसना तो भाव के सेवाय और कोईतरोंसे नहीं हो सकती है यह तीर्थ विछेद नहीं है विद्यमान है मं० भ० के वगैरा है फरसना होना कठन है तो विछेद से विशेष है १ ले भ० का कल्या० १ मो० भया है वहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035250
Book TitleSarv Tirtho Ki Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Chhajed
PublisherShitalprasad Chhajed
Publication Year1893
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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