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________________ सरस्वती [भाग ३८ के कहने में संकोच का अनुभव करे ? दूसरे स्थल जीवन में प्रवेश करती हैं तब उनके सामने एक विकट पर रोज़ और जनककुमार की कुटी में कामुक थानेदार- समस्या उठ खड़ी होती है। अपने नये जीवन को किस द्वारा जनककुमार का जो शिक्षा दिलवाई गई है वह ढंग से ले चलें, उन्हें यह नहीं सूझता है। हमारे देश की ठीक नहीं कही जा सकती। पर इसमें मिस रानी और शिक्षा भी केवल किताबी शिक्षा होती जा रही है, उसमें जनककुमार के चरित्र बहुत शुद्ध चित्रित किये गये हैं। व्यावहारिक जीवन के सम्बन्ध में विशेष ध्यान नहीं दिया उनके आचरण से भारतीय युवक-युवतियाँ अपने आचरण जाता है। इस कारण शिक्षित नवयुवतियाँ भी गृहस्थ-जीवन को सुदृढ़ बना सकती हैं । इस उपन्यास की भाषा भी सरल में प्रवेश करने पर एक अबूझ पहेली के हल करने की है, इससे कथानक अासानी से समझ में आ जाता है। उलझन में पड़ जाती है। उपन्यास-प्रेमियों को इस उपन्यास को पढ़ना चाहिए। यह पुस्तक स्त्री-पुरुषों के जीवन की ऐसी ही जटिलता -गंगासिंह पर प्रकाश डालती है। यह उपन्यास के तर्ज़ पर ६-मोतियों के बन्दनवार–पुस्तक मिलने का लिखी गई है और इसमें यह बताया गया है कि पता-प्रकाशक, ११ एलगिन रोड, प्रयाग है । मूल्य सवा दाम्पत्तिक जीवन किस तरह सुख-पूर्वक बिताया जा सकता रुपया ११) है। है। इसके लिए बीच बीच में तरह तरह के उपयोगी इस पुस्तक की सहायता से मोतियों के तोरण, बन्दन- नुस्खे तथा उपचार भी बताये गये हैं। वस्तुतः यह गार्हस्थ्य वार तथा लेम्पशेड बनाये जा सकते हैं। रंग-बिरंगे मोतियों शास्त्र एवं कामशास्त्र-सम्बन्धी पुस्तक है। इस पस्तक में से सिंह. तोता. मोर. राजहंस. भारतमाता, कदम्ब के नीचे ३३ परिच्छेद हैं। इसके ३२वे परिच्छेद में ऐ श्रीकृष्ण, स्वागतम् इत्यादि अनेक नमूने बनाये जा सकते लिखी गई हैं जिनका जानना प्रत्येक नये दम्पती के लिए हैं । बनानेवालों की सुविधा के लिए 'तारण बनानेवालों आवश्यक है । इसमें केवल व्यक्तिगत जीवन पर ही प्रकाश के लिए कळ ज्ञातव्य बातें. तोरण के मोती. 'बनाने नहीं डाला है. बल्कि गृहगत. समाजगत. लोकगत व्यावकी विधि' इन विषयों का अच्छी तरह समझाते हुए हारिक जीवन की भी इसमें विस्तार से चर्चा की गई है। वर्णन किया गया है। विषय के वर्णन का ढंग रोचक और हृदयग्राही है। गुजरात तथा बम्बई प्रान्तों में मोतियों के तोरण-द्वारा . मुकुटविहारी द्विवेदी 'प्रभाकर' खिड़कियाँ तथा दरवाजों के सजाने का बड़ा प्रचार -सन्त–सम्पादक, श्रीमहर्षि शिवव्रतलाल हैं। है। आशा है कि इस प्रान्त की कलारसिक स्त्रियाँ भी वार्षिक मूल्य ४॥) है। पता--मैनेजर 'सन्त' कार्यालय, प्रयाग । इस प्रकार के सस्ते आकर्षक तथा सुन्दर नमूने डाल महर्षि शिवव्रतलाल राधास्वामी-सम्प्रदाय की एक कर अपने घर सजायेंगी। इस विषय की हिन्दी-भाषा में शाखा के 'सद्गुरु' हैं। यह 'सन्त' उन्हीं का मासिक पत्र यह पहली पुस्तक है। पुस्तक इस ढंग से लिखी गई है है, जो गत दस वर्षों से हिन्दी में प्रकाशित हो रहा है । कि छोटी छोटी बालिकाओं से लेकर साधारण पढ़ी-लिखी 'सन्त' का यह दिसम्बर १९३५ का अङ्क है और 'शिवस्त्रियाँ तक बिना किसी कठिनाई के, थोड़े से मूल्य में, संहिता' के नाम से प्रकाशित किया गया है। पौराणिक तोरण या बन्दनवार बनाने का तरीका समझ जायँगी। यह कथात्रों एवं रूपकों में 'शिव' तथा उनके परिवार का जो पुस्तक विशेषतया बालिकाओं तथा स्त्रियों के लिए विशेष वर्णन किया गया है उन सबके रहस्यों को इस 'अंक' में सरल उपयोगी है। भाषा तथा रोचक शैली में समझाने का प्रयत्न किया गया __७-प्रेमपिचकारी-लेखिका व प्रकाशिका, श्रीमती है। शिव कौन हैं, उनका वर्ण श्वेत क्यों है, उनके गले की राधारानी श्रीवास्तव, श्री माधवाश्रम, २९ न्यू कटरा, मुण्डमाला का क्या अर्थ है, कपाल-पात्र में शिव के भंग इलाहाबाद हैं। पृष्ठ-संख्या ४४२, छपाई व सफ़ाई सुन्दर, पीने का क्या रहस्य है, इत्यादि प्रश्नों की युक्तिसंगत सुनहरी सजिल्द पुस्तक का मूल्य ३) है। विवेचना की गई है। पुराणों के इन आलंकारिक रहस्यों हमारे देश की बालिकायें जब पढ़-लिख कर गृहस्थ- को खोल कर योग-दृष्टि से उनकी जो व्याख्या इसमें की गई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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