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________________ सरस्वती - भाग ३ ने तरह तरह के प्रमाणों का 'अम्बार' लगा दिया है, शिलालेख आदि में श्रालेख्याक्षर कैसे लिखे जाने चाहिए, जिनको पढ़कर मुझ जैसे साधारण पाठक को यह विश्वास मुद्राक्षर (मोनोग्राम) चित्रबन्ध (तुग़रा) नागरी अक्षरों हो जाता है कि ब्रह्म भट्ट लोग जन्म से ब्राह्मण हैं । विशे- से किस प्रकार बन सकते हैं, इत्यादि विषयों का उन्होंने षज्ञों की बात दूसरी है। सरल तथा हृदयग्राहिणी शैली में वर्णन किया है । पुस्तक चन्द कवि को सभी भट्ट मानते हैं ही। सूरदास जी के अन्तिम भाग प्राकृति-खण्ड में वर्गकाष्ठों पर चार उनके ही वंशज हैं, इसलिए वे भी ब्रह्म भट्ट थे। भूषण प्रकार के आलेख्याक्षरों के बनाने की विधि प्रदर्शित की 'कनौज कुल' के ब्रह्म भट्ट थे न कि कनौजिया ब्राह्मण, और गई है, जिससे यह पुस्तक विद्यार्थियों, आलेख्याध्यापकों मतिराम उनके भाई थे अतएव वे भी ब्रह्म भट्ट थे। बिहारी- और शिलालेख तथा साइनबोर्ड लिखनेवालों के लिए अत्यन्त उपयोगी हो गई है। प्रत्येक विद्यालय में जहाँ 'कवि' थे और 'केसव राय' के पुत्र । और 'राय' उपाधि हिन्दी-सुलेख तथा अक्षर-अालेख्य की शिक्षा दी जाती से प्रकट है कि वे ब्रह्म भट्ट थे । इस प्रकार यह सिद्ध होता है, इस पुस्तक का प्रचार होना चाहिए। पुस्तक बड़े है कि ये पांचों महाकवि ब्रह्म भट्ट थे। परिश्रम से लिखी गई है और निर्विवाद रूप से हिन्दी. अपने को ऊँचे कल का ब्राह्मण मानकर ब्रह्म भट्टों लिपि-कला और अक्षर-विज्ञान पर एकमात्र प्रामाणिक पुस्तक को ब्राह्मण मानने से इनकार करनेवाले मिश्रबन्धुओं को है। इसका मल्य ।। है। यह पुस्तक पढ़कर कुढ़न होगी। पर किया क्या जाय ! (२) लिपि-कला का परिशिष्ट-हमारे प्रान्त में उन्होंने बुरे घर बायन दिया। मेरी तो उनसे विनीत प्रार्थना सभी स्कूलों में सुलेख की शिक्षा का प्रबन्ध है। उनमें है कि इस पुस्तक को पढ़कर वे इस महासभा को किसी प्रचलित, सोलह 'आदर्श लिपिमालाओं', लिपि पुस्तकों, प्रकार सन्तुष्ट कर दें, नहीं तो 'मिश्रबन्धु-प्रलाप' (दूसरा माडल कापियां आदि लिपि-कला सिखाने के उद्देश से भाग) और 'विनोद-परीक्षा' रूपी दो प्रहार और उपस्थित प्रकाशित लिपि-पुस्तकों की इस परिशिष्टाङ्क में भट्ट जी ने होनेवाले हैं ! सप्रमाण समालोचना करके हिन्दी-लिपि-कला की उपयुक्त भगवान् की असीम कृपा होगी जब यह जन्म-जाति- सेवा की है। उपर्युक्त लिपि-पुस्तकों के अादर्श-हीन, भ्रष्ट पाँति का मिथ्या अभिमान हम भारतीयों के मस्तिष्क से अक्षरों को उद्धृत कर उनके दोषों को उन्होंने वाणनिकलेगा। जाने, वह सुदिन कब आवेगा। चिह्नों-द्वारा दिखलाया है और उन्हीं के सामने आदर्श बाबूराम सक्सेना, एम० ए०, डी० लि. अक्षर रखकर तथा 'विशेष सूचना' के स्तम्भ में उन दोषों ३-४-पंडित गौरीशंकर भट्ट, अक्षर-विज्ञान- की चटपटी समीक्षा की है। प्रचलित और पाठ्य-विधि कार्यालय, मसवानपुर, कानपुर, की दो पुस्तकें- में स्वीकृत लिपि-पुस्तकों के अक्षरों को उन्होंने (१) लिपि-कला-पंडित गौरीशंकर भट्ट लिपि-कला (१) अवैज्ञानिक, (२) अस्वाभाविक, (३) लेखनी-विरुद्ध, के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने देवनागरी के अक्षरों को सुन्दर (४) अनुपात-हीन, (५) सौन्दर्य-हीन तथा (६) परस्पर और सुसंगठित करने में अपना सारा जीवन लगाया विभिन्नाकार इन षट् दोषों से युक्त सिद्ध किया है। है। खेद है कि हम हिन्दी-भाषी अब तक अपने इस इनके प्रकाशकां और पाठ्य-विधि-निर्माताओं को इस एक-निष्ठ कलाकार की कृतियों का समुचित आदर नहीं आलोचना की ओर ध्यान देना चाहिए। इससे हिन्दी कर सके । प्रस्तुत पुस्तक में भट्ट जी ने लिपि-कला और और अबोध बालकों का बड़ा उपकार होगा। सुलेखाअक्षर-विज्ञान की आवश्यकता और उपयोगिता का प्रति- ध्यापक और अपने बालकों को हिन्दी का सुलेख सिखाने पादन और उसकी आवश्यकता न समझनेवाले सुलेखा- के लिए इसमें सन्देह नहीं है कि भट्ट जी की 'श्रादर्श नागरी नभिज्ञ व्यक्तियों के भ्रान्त विचारों का उचित खण्डन लिपि-पुस्तक' (भाग १-६) हिन्दी में सर्वश्रेष्ठ तथा एकमात्र किया है। सुन्दर और लिपि-विज्ञान के नियमों से अनु- वैज्ञानिक लिपि-पुस्तक है । इस 'परिशिष्ट' का भी मूल्य।) है। मोदित नागरी अक्षर कैसे लिखे जा सकते हैं, साइनबोर्ड, कैलाशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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