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________________ . संख्या ६] नई पुस्तकें ५९७ १--ब्वाय-स्काउटिंग-लेखक, श्रीयुत कृष्णनन्दन- के बालकों और नवयुवकों) को देशभक्ति, स्वावलम्ब, प्रसाद प्रकाशक, सेन्ट्रल बुकडिपो, प्रयाग हैं। पृष्ठ-संख्या सत्यप्रियता, कर्तव्यपरायणता, निर्भीकता आदि की शिक्षा ४५०७ मूल्य २॥) है। मिलेगी। पुस्तक न केवल बालचरों के ही पढ़ने की है इस पुस्तक के लेखक बालचर्य शास्त्र के अच्छे विद्वान् प्रत्युत प्रत्येक बालक, युवक, अध्यापक और अभिभावक के हैं । उन्होने अपने कई वर्षों के अनुभव और अध्ययन के मनन करने की वस्तु है । फलस्वरूप इस विषय का इतना अच्छा ज्ञान प्राप्त कर -बालकृष्ण राव लिया है कि वे इस पर एक ग्रन्थ लिख सकने के पूर्ण २-मिश्रबन्धु-प्रलाप (प्रथम भाग)--लेखक, पंडित अधिकारी हो गये हैं । यह हिन्दी का सौभाग्य है कि नारायणप्रसाद 'बेताब', प्रकाशक, आल इंडिया श्री भट्ट उन्होंने अपनी पुस्तक हिन्दी में लिखी । हिन्दी के भाण्डार ब्राह्मण महासभा के महामंत्री हैं । श्राकार छोटा, पृष्ठ १२८ को भरने में श्री कृष्णनन्दनप्रसाद जैसे उत्साही कर्मवीरों मूल्य ।।) है। का साहाय्य अमूल्य है । उनकी पुस्तक न केवल हिन्दी प्रस्तुत पुस्तक अाज एक चिरपरिचित मित्र से में अपने विषय की पहली पुस्तक है, न केवल वह अपने सम्मत्यर्थ प्राप्त हुई है। विचार था कि अन्य आवश्यक कार्य विषय की एक उच्च कोटि की पुस्तक है, बरन. वह ऐसी निबटा कर कुछ दिन बाद इसको पढूंगा। पर दो-चार पुस्तक है जिसका अन्य भाषाओं में अनुवाद कराने की पन्ने लौटते ही जी पूरी पुस्तक समाप्त किये बिना न माना। लोगों को आवश्यकता प्रतीत होगी और इससे हिन्दी का पुस्तक में बेताब जी का एक फोटो भी दिया हुआ -सम्मान होगा। है । दुर्भाग्य से मुझे उनका साक्षात्कार नहीं हुआ है, पर ____ इस समय बालचर्य जैसे विषय पर इतनी महत्त्वपूर्ण फ़ोटो से बेताब जी आकृति में एक गम्भीर पछाही आर्यपुस्तक लिखना केवल बालचर्य की अथवा हिन्दी की ही समाजी मालूम पड़ते हैं। किन्तु पुस्तक की चुलबुली नहीं, बरन देश की सेवा करना है। हमारे नवयुवक जिस भाषा और लच्छेदार शैली देखते ही बनती है। छपाई, अल्पायु में बालचर बन जाते हैं उस समय उनके लिए शीर्षक देने का ढंग, भाषा, युक्तियाँ, उर्दू-फ़ारसी का पुट इसकी महत्ता, इसके वास्तविक रूप और उपयोगिता को सभी बातों से फ़िल्म-कहानी-लेखक 'बेताब' का परिचय पूर्णतया क्या, कुछ भी समझ सकना असम्भव होता है। अधिक मिलता है, 'बेताब' गम्भीर समालोचक का कम । फिर समय बीतते बीतते वे बालचर्य के सिद्धान्तों को रट बेताब जी पिछली पीढ़ी के समालोचकों में से एक हैं, कर, उसके बाह्य आडम्बरों से अाकर्षित होकर उसके रंग जिनमें दिवंगत पंडित पद्मसिंह शर्मा अग्रगण्य थे। बेताब में अवश्य रंग से जाते हैं, पर उसकी तह तक वे फिर भी जी शर्मा जी की ही तरह विपक्षी को शिकंजे में कसते हैं नहीं पहुँच पाते । इस विश्व-विस्तृत बाल-अान्दोलन की और अच्छी 'गति' बनाते हैं । आत्मा से उनका परिचय नहीं हो पाता, उनकी बालचर्य.. यह पुस्तक हिन्दी के सुविख्यात लेखक मिश्रबन्धुत्रों शिक्षा अपूर्ण रह जाती है। की छीछालेदर करने के लिए लिखी गई है। श्री ब्रह्मभट्ट प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने बालचर्य के सिद्धान्तों को ब्राह्मण सभा मिश्र-बन्धुओं से इस कारण नाराज़ है कि सीधी-सादी किन्तु सजीव भाषा में समझाया है । बालचर्य उन्होंने हिन्दी-नवरत्न में लिखा है कि "कोई भाट अपने का इतिहास, स्काउट शब्द का अर्थ, स्काउटिंग का महत्त्व विषय में नहीं कह सकता कि वह द्विज है। भाट प्रायः आदि आदि विषयों पर उन्होंने केवल प्रकाश ही नहीं ब्राह्म भट्ट कहाते हैं ।" (पृ० २२२) डाला है, उन्हें सजीव बना दिया है, उनको एक प्रणाली एक गौण कारण यह भी है कि मिश्रबन्धुओं ने के रूप में नहीं, अपितु जीवन के एक आवश्यक अंग के सूरदास, भूषण, मतिराम और बिहारीलाल इन चार रत्नो रूप में दिखाया है। को ब्राह्मण तो माना है, पर ब्राह्म भट्ट नहीं और बेताब जी . इस पुस्तक का जितना अधिक प्रचार हो उतना का कहना है कि ये महाकवि ब्रह्म भट्ट थे.और ब्राहाण । ही हमारे देश के भावी जीवन-नायकों (आज-कल । ब्रह्म भट्टों को ब्राह्मण सिद्ध करने के लिए बेताब जी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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