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________________ संख्या ६] . शनि की दशा ५९१ बड़ी देर के बाद किसी तरह अपने आपको सँभाल- "पता नहीं, क्यों ? कहीं जाना अच्छा ही नहीं लगता।" कर रुंधे हुए कण्ठ से सन्तोष ने कहा-क्या बोलूँ, कोई सुषमा ने.विस्मित भाव से कहा-अच्छा क्यों नहीं ऐसी बात तो है नहीं। लगता भाई ? क्या विवाह हो जाने पर कोई दूसरों के यहाँ - सुषमा कुछ अाश्चर्य में श्रा गई। वह कहने लगी- का आना-जाना ही बन्द कर देता है ?" क्यों सन्तोष भाई, ऐसी कोई बात ही नहीं है जो कही कितनी वेदना सहकर सन्तोष ने पिता के गृह का जा सके? परित्याग किया है! उसको इच्छा थी कि वह सारा हाल. सन्तोष ने कम्पित कण्ठ से कहा-नहीं, अब मेरे सुषमा को बतला दे। परन्तु बतलावे कैसे ? बार बार पास कहने को कुछ नहीं रह गया है, सब समाप्त हो सोचने पर भी उसे कोई ऐसा उपाय नहीं सूझ पड़ा। . चुका। सन्तोष मन ही मन सोचने लगा कि मैं तो जल जलसुषमा ने मुस्कराहट के साथ कहा-वाह सन्तोष कर मर ही रहा हूँ, क्या अब सुषमा को भी मेरे साथ जलना भाई, यह कैसी बात है ? आपने विवाह कर लिया और पड़ेगा ? इससे तो यह कहीं अच्छा था कि मैं दूर से ही हम लोगों को ज़रा सी ख़बर तक न दी। क्या हम लोग उसकी मूर्ति का ध्यान करते करते दिन काट दूं। क्या वह इतने पराये हो गये हैं ? अभी तक परिस्थिति को समझ नहीं पाई ? सुषमा का ___सन्तोष को निरुत्तर देखकर सुषमा फिर बोली- भाव देखकर तो कोई ऐसी बात नहीं मालूम पड़ती कि ख़बर नहीं दी तो न सही, इससे कोई हानि नहीं है, किन्तु मेरे विवाह का समाचार पाकर वह दुःखी हुई है ! वह तो भाभी जी से एक बार मुलाकात तो करा दीजिए । मेरे अब भी आनन्द कर रही है। वेदना का कोई चिह्न ही हृदय में इस बात की अत्यन्त अभिलाषा है कि मैं उनसे उसके मुख-मण्डल पर नहीं उदित हुआ है। तो क्या मिलकर ज़रा-सा बातचीत करूँ। सुषमा मुझसे प्रेम नहीं करती थी? क्या मैं इतने दिनों बड़ी देर के बाद सन्तोष ने कहा-ख़बर क्या देता तक अपने हृदय में एक मिथ्या श्राशा का पोषण करता सुषमा ? आया हूँ ? न, यह हो ही नहीं सकता । मेरा मन तो इस ____ क्यों, क्या वहाँ हम लोगों के जाने से आपकी कोई समय भी यही कह रहा है कि सुषमा मुझसे प्रेम करती हानि होती ?" है । परिस्थिति को अभी वह समझ नहीं रही है। "नहीं, यह बात नहीं थी।" ___ सन्तोष को चुप देखकर सुषमा ने कहा- क्या सोच "तो ?" रहे हैं ? बात का उत्तर क्यों नहीं दे रहे हैं ? बतलाया सन्तोष ने दबी आवाज़ से कहा-यां ही इच्छा ही नहीं कि बहू कैसी मिली। आप इस तरह के कैसे हो गये ? नहीं हुई। विस्मित भाव से सुषमा के मुँह की अोर ताक कर सुषमा ने विस्मित स्वर से कहा-इसका मतलब ? सन्तोष ने कहा--किस तरह का हो गया हूँ सुषमा ? ___ "मतलब क्या है ? वहाँ जाकर ही तुम क्या करती?" "और नहीं तो क्या ! ठीक से बोलते नहीं हैं, बहू के सुषमा खिलखिला कर हँस पड़ी। उसने कहा-तब बारे में कुछ नहीं बतलाते हैं । न जाने कैसे उद्विग्न से की बात तो तय थी। अब आपसे बतलाने में ही क्या- दिखाई पड़ रहे हैं ! अापकी यह अवस्था कैसे हो गई ? लाभ है ? आइए, अब घर चलें। मा आपके लिए बहुत एक हलकी-सी आह भर कर सन्तोष ने कहा- मुझसे अधीर हो रही हैं । आप आज-कल आते क्यों नहीं ? - कुछ न पूछो सुषमा । तुम मुझे क्षमा कर दो। सुषमा को देखते ही सन्तोष का दुःख नया हो पाया। "क्यों ? क्षमा किस बात के लिए ?" उसमें इतनी भी शक्ति न रह गई कि वह ठीक ठीक बात "न जाने क्यों, तुम्हारी एक भी बात का उत्तर मुझसे कर सके । भर्राई हुई आवाज़ से उसने कहा--अब मैं न नहीं दिया जाता । शायद तुम मुझसे रुष्ट हो गई हो।" चल सकूँगा सुषमा। सुषमा ने एक रूखी हँसी हँसकर कहा- नहीं, नहीं, - "क्यों?" रुष्ट क्यों होऊँगी ? मैं तो आप लोगों की तरह ज़रा ज़रा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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