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संख्या ६]
कानपुर का टेकनोलाजिकल इंस्टिट्यूट
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की संख्या तीन ही रक्खी गई । वज़ीफ़ा ४०) मासिक से घटा का कर दिया गया। वज़ीफ़ों की संख्या कम करके शकर और कर २५) मासिक कर दिया गया। दूसरे प्रान्तों के विद्या- तेल के विभागों में केवल दो-दो रक्खी गई। साधारण अनु. र्थियों से १५००) वार्पिक शुल्क लेना तय किया गया। सन्धान विभाग में केवल एक । इस कमिटी ने भी शिक्षा को इस्टिट्यूट की उपयोगिता देखकर कुछ दूसरी प्रान्तीय निःशुल्क ही रक्खा। दूसरे प्रान्तों के विद्यार्थियों से फीस लेने सरकारों ने भी अपने प्रान्त के विद्यार्थियों को इंस्टिट्यूट में का नियम पूर्ववत् बना रहा। दो वर्ष की शिक्षा के बाद शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्तियाँ देना प्रारम्भ कर इंस्टिट्यूट से डिप्लोमा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को दिया । यह क्रम अभी तक जारी है।
एशोसिएट ग्राफ हारकोट बटलर टेकनोलाजिकल इस्टयूट' १९८ के बाद १९३१ में शिक्षाविभाग के तत्कालीन (ए० एच० बी० टी० आई०) का टाइटिल तथा डिप्लोमा टाइरेक्टर श्रीयुत मे केन्जी की अध्यक्षता में फिर एक प्राप्त करने के बाद दो वर्ष तक अन्वेषण-कार्य करनेवाले जाँच-कमिटी नियुक्त की गई। इस कमिटी ने इंस्टिट्यूट के विद्यार्थियों को फेलो (एफ.० एच० बी० टी० आई०) का पिछले अनुभवों के अाधार पर कई एक महत्त्वपूर्ण सिफा- टाइटिल दिया जाने लगा। यह क्रम अभी तक जारी है । रिश की। इन सितारिशों के अनुसार इंस्टटयूट का चम- अब इंस्टिटयूट का शकर-विभाग इम्पीरियल कोसिल विभाग तोड़ दिया गया। बाद में इस विभाग के अन्तर्गत ग्राम एग्रिकलचरल रिसर्च (शाही कृ.प-अनुसन्धान. मेशीने एवं प्रयोगशाला यादि के यंत्र ग्रादि दयाल-बाग़ समिति) की सहायता से इमीरियल इस्टटयूट ग्राऊ शुगर की प्रौद्योगिक शिक्षण संस्था को भेज दिये गये। अब टेकनोलाजी नामक एक स्वतंत्र बृहत् संस्था में परिवर्तित चम-विज्ञान की शिक्षा भी दयाल बाग में ही दी जाती है। कर दिया गया है । यह संस्था भी हारकोर्ट बटलर टेकनोइंस्टटयूट में शिक्षण कार्य केवल शकर और तेल इन लाजिकल इंस्टिटयूट की ही इमारतों में स्थित है । गत ११ दो विभागों तक ही सीमित रक्खा गया। साधारण अनुसन्धानविभाग में शिक्षण कार्य बन्द कर दिया गया और केवल अनुसन्धान का प्रवन्ध रक्खा गया। इस कार्य के लिए प्रतिवर्ष दो विद्यार्थी लिये जाने लगे। शकर
और तेल के विभागों में दस-दस विद्यार्थियों की शिक्षा का प्रवन्ध किया गया । अाई. एससी० पास विद्यार्थियों का लिया जाना बन्द करके फिर से बी० एससी० पास विद्यार्थी लिये
[साइंटिफिक सोसाइटी के पदाधिकारी ।] जाने लगे। कोस तीन की
कास तान (बीच में इंस्टिट्यूट के वर्तमान स्थानापन्न प्रिंसिपल श्रीयुत पंडित दत्तात्रय यशवन्त अाठवले और चप से घटाकर दो वर्ष इम्पीरियल इंस्टिट्यूट अाफ़ शुगर टेकनोलाजी के डाइरेक्टर श्रीयुत पार० सी० श्रीवास्तव बैठे हैं।) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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