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________________ सरस्वती [ भाग ३८ इंस्टिटयूट अाफ़ शुगर टेकनोलाजी' नामक स्वतन्त्र संस्था का रूप धारण कर लिया है। शुरू के छः सात वर्ष तक इंस्टिट्यूट में शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत ही सीमित रक्खी गई थी। प्रत्येक विभाग में प्रतिवर्ष केवल ३ विद्यार्थी दाखिल किये जाते थे। प्रान्तीय सरकार प्रत्येक विद्यार्थी को. ४०) मासिक की छात्रवृत्ति देती थी। इनके अतिरिक्त इंस्टिटयूट के प्रिंसिपल को प्रत्येक विभाग में दो निःशुल्क विद्यार्थी दाखिल कर लेने का अधिकार था । युक्त प्रान्त के अतिरिक्त दूसरे प्रान्तों के विद्यार्थियों को भी यहाँ शिक्षा कीसुविधायें दी गई थीं, परन्तु उन्हें अथवा उनकी प्रान्तीय सरकार को उनकी शिक्षा का पूरा ख़र्च देना पड़ता था। इस्टिट्यूट भवन ।] १९२६ तक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डाक्टर ई० आर० - वाटसन इस्टिटयूट के प्रथम प्रिंसिपल रहे | उनकी मृत्यु के प्राप्त की गई। युक्तप्रान्त में श्रौद्योगिक रसायन की शिक्षा बाद डाक्टर गिलबर्ट जे० फाउलर स्थायी रूप से प्रिंसिपल देने का यह प्रथम प्रयत्न था। उच्च कोटि की प्रौद्योगिक नियुक्त किये गये। १९२९ के अन्त में डाक्टर एच० डी० शिक्षा के लिए उन दिनों अान्दोलन अवश्य किया ड्रेन स्थायी रूप से प्रिंसिपल बनाये गये। पर वे भी तीन जाता था, परन्तु विद्यार्थियों में खास तौर पर विश्व- वर्ष से अधिक समय तक इस पद पर न रह सके। उनके विद्यालयों की शिक्षा समाप्त करनेवाले विद्यार्थियों में- इस बाद इंस्टिट्यूट के खर्च में कमी करने के खयाल से प्रिंसिपल प्रकार की व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त करने की विशेष का स्वतंत्र पद तोड़ दिया गया। प्रान्त के उद्योग-विभाग के अभिरुचि न थी। अस्तु, विद्यार्थियों को इस प्रकार की डाइरेक्टर को एक्स आफिशियो के रूप से प्रिंसपल के पद शिक्षा के प्रति आकर्षित करने के लिए प्रान्तीय सरकार का भार सौंपा गया, परन्तु प्रबन्ध आदि के लिए इंस्टिट्यूट ने प्रथम वर्ष इंस्टिट्यूट में भर्ती होनेवाले सभी विद्यार्थियों के अधिकारियों में से एक सीनियर मेम्बर कार्यकारी को ७५) मासिक को छात्रवृत्ति देने का प्रबन्ध किया। प्रिंसिपल बना दिया जाता है । डाक्टर ड्रेन के बाद युक्तव्यावहारिक शिक्षा का ठीक ठीक प्रबन्ध करने के प्रान्तीय सरकार के तेल-विशेषज्ञ श्री जे० ए० हेयर ड्यूक उद्देश से विद्यार्थियों की संख्या बहुत ही सीमित रक्खी कई वर्ष तक इस पद पर कार्य करते रहे । अाज-कल तेलगई थी। प्रथम वर्ष केवल ३ विद्यार्थी भर्ती किये विज्ञान के सुप्रसिद्ध पण्डित श्रीयुत दत्तात्रय यशवंत आठगये । प्रथम वर्ष केवल प्रौद्योगिक रसायन की शिक्षा वले प्रिंसिपल का काम करते हैं। देने का प्रबन्ध किया गया । प्रौद्योगिक रसायन की शिक्षा अस्तु, १९२८ में सरकार ने इंस्टिट्यूट के पिछले के द्वारा विद्यार्थियों को बहुत-से व्यवसायों का साधारण सात वर्षों के कार्य की जाँच के लिए तथा इन सात व्यावहारिक ज्ञान करा दिया जाता था। अगले वर्ष वर्षों के कार्य से प्राप्त होनेवाले अनुभवों को दृष्टि में १९२२-२३ में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने पर तेल और रखते हुए उसे भविष्य में और अधिक उन्नत एवं उपयोगी चमड़े के विज्ञानों की शिक्षा देने के लिए और दो विभाग बनाने के सम्बन्ध में सिफ़ारिशें करने के लिए एक कमिटी खोले गये। १९२६ में शकर-विज्ञान की शिक्षा देने का नियुक्त की । इस कमिटी की सिफारिशों के अनुसार आयोजन किया गया। शकर-विभाग की उन्नति के साथ- इंस्टिट्यूट में बी० एस-सी० के बजाय विज्ञान में इंटरसाथ इस विभाग की भी उन्नति हो गई और अब इस मीडिएट पास विद्यार्थी भी भर्ती किये जाने लगे। दाखिले के विभाग ने दस वर्ष के अन्दर उन्नति करके 'इम्पीरियल लिए प्रवेशिका-परीक्षा का प्रबन्ध किया गया। विद्यार्थियों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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