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________________ राजस्थान की रसधार लेखक-श्रीयुत मूर्यकरण पारीक, एम० ए० पणिहारी 'पणिहारी' के गीत राजस्थान की आत्मा के सर्वोत्तम जस्थान देश अपने त्योहारों, गीतों और रंग-बिरंगे परिचायक हैं। उनमें जिस सौन्दर्य, जिस देशी छटा का वेष-भूषा के लिए भारतवर्ष में विशेषरूप से प्रसिद्ध विवरण रहता है, उसके प्रत्येक अंश पर राजस्थानी जीवन है। बल्कि यह कहा जाय तो अन्यथा न होगा कि सभ्यता की गहरी छाप लगी रहती है। बरसात राजस्थान की और विज्ञान के इस युग में जब सब अोर सादगी, सौकुमार्य और हलकापन ही श्रेष्ठता और सौन्दर्य के माप माने जा रहे हैं, राजस्थान इन्हीं तीनों के लिए बदनाम भी है। हमें विज्ञान और सभ्यता के विकास से विरोध नहीं होना चाहिए, परन्तु हमें अपने निजी संस्कारों और प्राचीन संस्थानों के साथ प्रेम और पक्षपात भी होना चाहिए। विश्वधर्ममानवता और राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए जातीयता की रक्षा करना मानव का पहला धर्म है। लोकगीत किसी जाति अथवा देश के BABA हृदय और संस्कारों के जितने सच्चे परिचायक होते हैं, उतनी उस देश की शास्त्रीय शैली से रची हुई कवितायें और काव्य नहीं। इसका एक कारण पनिहारिनों का एक दृश्य-उदयपुर ।] यह है कि लोकगीतों का निर्माण लोकहृदय से होता है सर्वोत्तम ऋतु है । इस ऋतु में सरोवरों के तट पर सन्ध्या और काव्य की उपज कवि के हृदय से होती है। एक सवेरे पनिहारिनों के समूह –'झूलरा' का वस्त्राभूषण से सजसामूहिक रुचि की उपज है, दूसरा व्यक्ति के हृदय का धज कर एक-स्वर से मर्मस्पर्शी गीत गाते हुए आना-जाना, प्रतिबिम्ब । एक ऐसा स्वर्गापम दृश्य उपस्थित करता है जिसकी कल्पना ४९ Shree Sud. Swami Gyanbhandar-Umara Surat
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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