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ला हावर
लेखक, प्रोफेसर सत्याचरण, एम० ए० प्रोफेसर सत्याचरण जी का मडेरा शीर्षक लेख हम 'सरस्वती' के पिछले अंक में छाप चुके हैं। अमरीका से योरप आते हुए उनकी यात्रा का यह दूसरा लेख है।
जिस ब मडेरा द्वीप आँखों से बिलकुल सब यही जानना चाहते थे कि ये वायुयान किस राष्ट्र के
अोझल हो गया था। फिर अट- हैं। पर वे इतनी उँचाई पर थे कि जहाज़ के कर्मचारियों श्र लांटिक की नीलिमामय जलराशि तथा यात्रियों में कोई उनको पहचान नहीं सका. केवल
र के अतिरिक्त और कुछ दिखाई अनुमान से सभी उन्हें स्पेन के बतलाते थे। और वे स्पेनISLATKAI नहीं पड़ता था। आज लगभग सरकार के थे अथवा विद्रोहियों के थे, यह भी ठीक ठीक १० दिन समुद्रतल पर बीत चुके थे। एम्सटर्डम पहुँचने में कोई नहीं कह सकता था। अभी ६ दिन और शेष थे। इस बीच में प्लीमाउथ, ला हावर पोर्चुगल के तट से लगभग ४.५ मील की दूरी पर इन दोनों स्थानों पर जहाज़ को और रुकना था। मुझे हमारा जहाज़ जा रहा था। इतनी दूरी होने पर भी तट सबसे अधिक उत्सुकता ला हावर देखने की थी, क्योंकि अच्छी तरह दिखलाई पड़ता था। भरे पहाडी तट और ऐतिहासिक स्थान होने के साथ साथ इसका सामुद्रिक हमारे जहाज़ के बीच अथाह जल-राशि थी। कभी कभी महत्त्व भी है।
जहाज़ बीच में श्रा जाता था। अटलांटिक भिन्न स्पेन के गृह-युद्ध का वर्णन दक्षिणी अमेरिका के भिन्न प्रकार की मछलियों के लिए प्रसिद्ध है। कभी चाँदी पत्रों में भली भांति पढ चका था। यह भी पता लग गया की तरह चमकती हई उडनेवाली मछलियाँ जहाज से था कि वायुयान दुश्मनों के जल-पोतों की ताक में उड़ा थोड़ी दर पर चक्कर काटती थीं। कल तो जहाज़ के दे करते हैं और अवसर पाते ही उनका संहार कर देते हैं। तक पहुँचने की धृष्टता करती थीं। सबसे अधिक आनन्द इसमें सन्देह नहीं कि हम लोग डच जहाज़ में थे, पर डालफ़िन मछली के देखने में आता था। डालफ़िन का हमेशा इस बात का भय था कि कहीं धोखे से हमारे जहाज़ कलेवर बड़ा और मांसल होता है । जल से इसके बाहर का सत्यानाश और हमारे जीवन की बलि न हो जाय। होते ही समुद्र में एक छोटी-सी चट्टान-सी प्रतीत होने कप्तान एक चतुर व्यक्ति था। उसने सभी कर्मचारियों को लगती थी। डेक पर बैठे हुए इन जलीय जन्तुओं के श्रावश्यकता से अधिक सतर्क रहने की प्राज्ञा दे दी थी। देखने के अतिरिक्त और मनोरञ्जन का सामान ही क्या हो जब तक जहाज़ पोर्चुगल और स्पेन के तट के पास से हो कर सकता है? गुज़र रहा था तब तक किसी कर्मचारी को चैन नहीं थी। मेरे साथ एक मुलाटा-जाति के सज्जन थे। इनकी ___ यह यात्रा कुछ अद्भुत थी। हृदय सशङ्क रहता और जन्म-भूमि डच-गायना थी और ये जावा में डच सरकार
से लोग देर तक डेक पर समय गजारते। जिस समय के मातहत शिक्षा विभाग के कर्मचारी थे। मलाटा. जिब्राल्टर के सीध में हमारा जहाज़ पहुँचा उस समय जाति के लोग भारत के एंग्लो-इण्डियन की भांति मिश्रित कितने ही जंगी और व्यापारी जहाज़ द्रुतगति से इधर- रक्त के होते हैं । इन सज्जन में डच और नीग्रो रक्त उधर प्रादे-जाते दिखलाई पड़े। जंगी जहाजों का आकार का संयोग था। अतः इनकी गणना गोरों में नहीं दसरी ही भाँति का होता है। उनकी रूप-रेखा देखते ही सकती थी। ऐसे लोगों के साथ सामाजिक अवसरों पर लोग उनके महत्व को समझ जाते हैं । जिब्राल्टर से उत्तर कालों जैसा ही व्यवहार किया जाता है। अमरीका में काले की अोर पोर्चुगल के किनारे पहुँचते ही कई वायुयान. और गोरों का भेद सर्वत्र दीख पड़ता है, अन्तर यही है उड़ते हुए दिखलाई दिये। जहाज़ में हड़कम्प मच गई। - कि कहीं कम और कहीं ज़्यादा।।
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