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- सरस्वती
[भाग ३८
इस कम्पनी का डायरेक्टर उस कम्पनी का भी डाय- परन्तु अब नई कम्पनियों के हिस्सेदार भी कम्पनी के रेक्टर या हिस्सेदार हो।
प्रबन्ध में यथायोग्य भाग ले सकेंगे। यह सुधार नई कम्पनियों के लिए बहुत ही उपयोगी (८) कम्पनी की बड़ी मीटिंग में कम्पनी के हिसाब की होगा।
जांच करनेवाला अर्थात् आडीटर बुलाया जा सकेगा, (७) मैनेजिंग एजंट के डायरेक्टर कम्पनी के कुल डाय- और वह हिसाब की अपनी जांच का मीटिंग में रेक्टरों के तृतीयांश से अधिक न होंगे।
विवरण दे सकेगा। पहले तो बहुधा कम्पनियों का असली प्रबन्ध मैनेजिंग हिस्सेदारों के दृष्टिकोण से यह भी एक बहुत उपयोगी एजंट के अधिकार में था और हिस्सेदार केवल नाम-मात्र सुधार है । के लिए थे। हाँ, उन्हें मुनाफ़ा ज़रूर मिल जाता था।
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दीपदान
लेखक, श्रीयुत द्विजेन्द्रनाथ मिश्र 'निर्गुण' अरे साहसी ! अरे वीर!
ढूँढ़ रहे हो जल - तल में कुछ तिनकों की नौका लेकर किसे खोजने चले धीर? तुम जहाँ-तहाँ बिखरे मोती ? आद्यन्तहीन सा जलमय पथ !
नीरव सरिता का वक्ष चीर ! दूर - दूर तक नीर • नीर!
स्वर्गङ्गा के स्नेह - हीन आस पास ये तम पिशाच
तारा-दीपक की अमर किरन ! हँस रहे खड़े धर तरु-शरीर।
अरे! करोगे स्पर्धा कैसे ... . . अगणित लहरेंचञ्चल-अधीर!
क्षण - भगुर स्नेही-जीवन ? कौन बात लग गई अचानक
बह उठे न जाने कब समीर ? ऊब गया जो जग से मन ? 'किस सुख की आशा से निकले
किसी एक अज्ञात शोध पर
कोमल प्राणों की बाजी ! तपश्चरण करने लघुतन ! तिल तिल जलते होती न पीर ?
पता नहीं, किस प्राप्ति-हेतु ..या बन्दी हो गये प्रणय के
इस कीमत पर तुम हो राजी। समा गया उर में संताप !
मेटोगे सोने की लकीर ? प्रेमानल की जलती ज्वाला
कौन कहे मर मिटने कीचले जा रहे हो चुपचाप!
तुमको ऐसी इच्छा क्यों है ? हो उदासीन, भाती न भीर ? “द्रवित हुए किस दुखिया को
कौन कहे, जीवन क्यों है ? लख सूने तट बैठी रोती ?
__ क्या जीवन ही है व्यथा-पीर ?
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