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________________ संख्या ६] पाप की छाया सटे हुए ड्राइंगरूम में पहुँचकर कान लगाकर बातें रेणुका - प्रकाश का मार्ग अंधकार के ऊपर है ! हमारी सुनती हैं।) मैत्री का वैभव क्या यही तुच्छ लालसा थी ? तुम विनोद-मैं सभी कुछ भूलने के लिए तैयार हूँ। पर एक जानते थे, मैं अनाथिनी हूँ, मैंने दूसरों के दान और बात नहीं भूल सकता (बीच में ही अानन्दमोहन परोपकार पर जीवन-यापन किया है। फिर, तुमने किस तेज़ी से उठकर बाहर चले जाते हैं। रेणुका उन्हें अाशा से, किस मोह से, किस भ्रम से मेरी आँखों पर देख नहीं पड़ती)...(विनोद कहता ही रहता है) और पट्टी बाँधी ? विनोद, तुमने क्षण भर के लिए भी वह है-सुषमा। न सोचा कि तुम्हारे वैभव का उन्माद मेरी दरिद्र (रेणुका तुरन्त प्रवेश करती है) असमर्थता को नहीं कुचल सकता था। पाप की रेणुका०—क्या नहीं भूल सकते विनोद ? (सम्पादक जी अाँखें अंधी हुआ करती हैं ? की ओर देखकर कुछ लज्जा और संकोच से आरक्त विनोद-यह क्यों भूलती हो रेनू कि आँखें बंद कर लेने मुख हो जाती है) क्या कहा विनोद ? से ही क्षण भर के लिए बवंडर से बच सकती हो। (इसी समय नौकर का प्रवेश) अच्छी दृष्टिवालों को भी तो आँधी में अंधा बनना नौकर-(सम्पादक जी की ओर देखकर) आपको बाबू पड़ता है ! साहब ने सब काग़ज़ों के साथ बुलाया है) (विनोद रेणुका यह सच है विनोद, तुमने अपने नाटक का. की अोर देखकर) चाय, हाज़िर करूँ? पहला ही पर्दा मेरी आँखों के सामने फैलाया था ! यह (सम्पादक जी जाते हैं) भी सच है कि तुम्हारे सुख की चाँदनी को मैंने ही विनोद---नहीं, अभी नहीं । (रेणुका से) तुमने क्या सुना पहली बार बदली बनकर उदास और म्लान बना रेनू ? तुम क्या समझीं ? डाला। किन्तु ...किन्तु...(ठहरकर और अवरुद्ध रेणुका-कुछ सुना है और कुछ समझी हूँ । बाकी सुनना कंठ से) विनोद, तुमने यह न समझा कि छाया का और समझना चाहती हूँ। अस्तित्व वस्तु से भिन्न नहीं हुआ करता। यह विनोद--उसमें सुनने और समझने जैसी बात ही कौन-सी भी समझ लो विनोद कि प्रकाश में ही छाया का बोध है ? तुम यह तो जानती ही हो कि विवाह एक होता है। आज मैं अनुभव करती हूँ कि इस बवंडर व्यवस्था है ----विधान है। उसमें कुछ विचार से काम में मैं तिनके की तरह उड़ चुकी हूँ और तुम पत्थर लेना पड़ता है। की तरह स्थिर हो। ...... रेणुका - इसका अर्थ यह है कि विवाह की बात एक (चक्कर आ जाता है) अविचार है और विवाह वस्तुतः विचार है ! क्या विनोद-(उसे सँभालना चाहता है। इसी समय सुषमा तुम्हारी कानूनी योग्यता ऐसे ही तर्क का सहारा ले प्रवेश करती है। विनोद सकपका जाता है) सकती है? सुषमा (विनोद की उपेक्षा करती हुई) रेनू, (रेनू को गश [इसी समय सुषमा भी आ पहुँचती है; किन्तु वह आगया है। वह रूमाल निकाल कर हवा करती है। एकाएक भीतर प्रवेश नहीं करती। संदेह के साथ बाहर विनोद सहायता देने के लिए फिर आगे बढ़ता है) दूर खड़े खड़े सुनती है। रहो, (विनोद की अोर घृणा और क्रोध से देखती है) विनोद-पर मैंने तुमसे कब घृणा की है रेनू ? मैंने इन्हीं कानों से सब कुछ सुना है। तुम्हारा पौरुषरेणुका-घृणा ! वह मैं सहन कर सकती थी। तुमने मुझसे तुम्हारा उन्माद स्त्रियों के हृदय के साथ यों खिलवाड़ __ घृणा नहीं की, पर मुझे घृणित बना डाला विनोद ! कर सकता है ! (रेणुका की ओर संकेत कर) ये विनोद-प्रवाह के विरुद्ध तैरनेवाले को कभी पानी की तुम्हारी ही आँखें हैं जिन्हें तुमने अंधा बनाया है सतह के नीचे होकर जाना पड़ता है । हमारी लालसायें यह तुम्हारा ही हृदय है जिसे तुमने चूर चूर किया समाज के प्रवाह के विरुद्ध थीं। और कुछ नहीं। है-यह तुम्हारा ही पौरुष है जिसे तुमने इस तरह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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