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सरस्वती
[भाग ३८
ब्रिटिश के सिक्के के समान ही वज़नदार होते हुए भी मूल्य में कम हो गया है । उदयपुरी रुपया अँगरेज़ी दस आने के बराबर है। उदयपुर में पुराने ज़माने से ही अपना सिक्का है। यहाँ की एकन्नी चाँदी की होती है। यहाँ के अपने सिक्कों पर 'दोस्तेलंदन' शब्द लिखा होता है।
उदयपुर पहाड़ों के भीतर बसा है। राज्य की उपजाऊ ज़मीन बड़ेबड़े जागीरदारों में बँटी हुई है और
प्रत्येक जागीरदार अपनी अपनी [उदयपुर- 'जय-समन्दर' जिसका घेरा ९२ मील है ।।
जागीर का स्वतंत्र शासक है । प्रजा सारे राज्य का भार आठ-दस व्यक्तियों के हाथ में है। बहुत ग़रीब, अशिक्षित और बाहरी दुनिया से अपरिचित यही महाराना को सलाह देते हैं और उसके मुताबिक है। यहाँ के भीलों को जंगल के कन्द-मूल खाकर जीना सब काम होता है।
और फटे-पुराने लत्तों से अपनी लाज ढंकना पड़ता है। आधुनिक जगत् से उदयपुर बहुत पीछे है। कई भीलों की ऐसी दशा देखकर मैं बहुत दुखी हुआ। देशी राज्यों में निर्वाचन का अधिकार प्रजा को मिल हमने उदयपुर से लौटती बार चित्तौरगढ़ को भी चुका है और असली शक्ति न रहने पर भी जन-सभा देखा। रेलवे स्टेशन से सिर्फ तीन ही मील की दूरी पर राजकाज में अपना मत ज़ाहिर करती है । हम लोगों ने एक छोटी-सी पहाड़ी पर यह ऐतिहासिक गढ़ बना हुआ सुना कि यहाँ के अधिकारी राज्य में किसी प्रकार का है। चित्तौरगढ़ महाराना प्रताप और उनके पहले समय
आन्दोलन पसन्द नहीं करते। आर्यसमाज तक को भी में भी समस्त राजपूती शक्ति का एक प्रधान केन्द्र था। सँभल सँभल कर पैर रखना पड़ता है।
यहीं अलाउद्दीन खिलजी की अपार सेना से महीनों घिरे ____ हाल में उदयपुर-राज्य के भीतर 'नाथद्वारा' में कई रहने पर जब सफलता की अाशा न रह गई तब पद्मिनी ने सिक्के मिले हैं । इन सिक्कों में 'सिविजानपदा' शब्द लिखे अपने को अग्नि को अर्पण किया था। मीराबाई के हैं, जिससे मालूम पड़ता है कि पाँचवीं-छठी शताब्दी में पूजा-गृह का चिह्न अब भी मौजूद है, और उसका यहाँ प्रजातन्त्र राज्य था। उस समय इस बहादुर देश में जीर्णोद्धार किया जा रहा है । महाराना कुम्भ का विजयजनसत्ताक शासन था। हिन्दुस्तान में पहले ऐसे बहुत-से स्तम्भ भी उस ज़माने की एक शानदार स्मृति है। चित्तौर प्रजातन्त्र राज्य थे। उन्हीं में से शिवि का भी एक गणतंत्र के भीतर ऐसी ऐसी बहुत सामग्रियाँ हैं जो किसी भी था । उदयपुर की आर्थिक दशा असन्तोषजनक है। कुछ इतिहास-प्रेमी के लिए काफी हैं। चित्तौरगढ़ में वहाँ की ही वर्ष पहले अफीम की खेती से उदयपुर-राज्य को बहुत-सी पुरानी चीज़ों को एक बड़े मकान में रखकर काफ़ी आमदनी होती थी। अब इसके रुक जाने से एक म्युज़ियम का रूप दिया गया है। उदयपुर का निर्यात प्रायः बन्द हो गया है और काई चित्तौरगढ़ की चारों ओर पत्थर की मज़बूत दीवार चीज़ व्यापार के लिए बाहर नहीं जाती, बल्कि बाहर से है, जो दूर से ही बहुत डरावनी मालूम पड़ती है। गढ़ ही खाने-पीने से लेकर कपड़े-लत्ते तक सभी चीजें बहुत तक गाड़ियों की सड़क बनी हुई है और रास्ते के बीच परिमाण में राज्य में आती हैं। इसलिए वहाँ का सिक्का बीच में बड़े बड़े फाटक हैं जिनको पोल कहते हैं ।
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