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________________ संख्या ६] उदयपुर-यात्रा उदयपुर की दर्शनीय सभी चीज़ मेरे मित्र ने मुझे दिखलाई। महाराना के महल से लेकर पब्लिक स्कूल तक को मैंने देखा । पब्लिक स्कूल की मनोवैज्ञानिक रसायन-शाला बहुत ही रोचक तथा उपयुक्त चीज़ मालूम पड़ी। बालकों को उनके चरित, प्रकृति और मन की प्रवृत्ति के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाती है, जो एक नई संस्था है. जिन देखकर [उदयपुर-झील से घिरा हुआ शहर ।] मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। उदयपुर शहर के चारों तरफ़. चार टूटे हुए फाटक हैं, पत्थर का एक मन्दिर है। यह मन्दिर चित्तौर के पुराने जिन्हें 'चोल' कहत हैं । ये टूटे फाटक पुराने शहर की मंदिरों की भद्दी नक़ल है। लोग कहते हैं कि मीराबाई सीमा सूचित करते हैं। उदयपुर बहुत ही छोटा शहर है, ने जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) से भगवान् को बुलाकर यहाँ किन्तु यह फाटक बहुत बड़ा है। महाराना और उनके पधराया था, इसी लिए इसे जगन्नाथ मंदिर कहते हैं। कुछ रिश्तेदारों के महलो के सिवा और सब इमारतें शहर उदयपुर-राज्य राजपूताना में ही क्या, सारे भारतवर्ष के योग्य नहीं है। गलियाँ भी तङ्ग हैं। तो भी बिजली में प्रसिद्ध है। महाराना का राजवंश सातवीं शताब्दी से का प्रबन्ध है। महाराना का महल तो अाधुनिक ढङ्ग की राज्य करता आ रहा है। एक समय था जब चित्तौर इमारत का एक सुन्दर नमना है । सारे शहर में यदि कोई अपनी बहादुरी से मुग़लों को नाक में दम किये हुए था। देखने योग्य इमारत है तो महाराना का महल है। उदयपुर उसके बाद भी उदयपुर स्वतंत्र रहा। अाज भी उदयपुर महाराना प्रताप के पिता महागना उदयसिंह ने बसाया था। के सिक्कों में दोस्तेलंदन' लिखा जाता है। यहाँ के शहर के अन्दर नीन सौ वर्ष का पराना शानदार महारानानों में कोई भी ग्राज तक ब्रिटेन के बादशाह का ए० डी० सी० नहीं बनाया गया है। उदयपुर में एकसत्ताक राजतन्त्र है। महाराना जो कुछ चाहें, कर सकते हैं। वहाँ कोई प्रजा-परिषद् नहीं है और न कोई ऐसा स्वतंत्र समाचार-पत्र है जो प्रजा की इच्छा को प्रकाशित करे। प्रजा को सरकारी मामलों में राय प्रकट करने का निषेध है । प्रजा ने कभी उदयपुर---फ़तेहसागर' जिसके किनारे महाराना ने बहुत बड़ा बाग़ बनाया है ।] ऐसा किया भी नहीं। RA Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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