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________________ सरस्वती विदेशी राजनीति — नेहरू जी ने पिछले वर्षो में दो-एक बार योरप की यात्रा की । जर्मनी, स्विटज़लैंड, फ़्रांस, इंग्लेंड और रूस आदि देशों में जाकर वहाँ के सार्वजनिक आन्दोलनों का अध्ययन किया । योरप की समस्याओं का वर्णन नेहरू जी ने 'योर में', 'आपसी मतभेद,' 'ब्रूसेल्स में पीड़ितों की सभा, ' शीर्षक स्तम्भों में भली भाँति किया है । इन परिच्छेदों में राजनैतिक विचारों को लिपिबद्ध करने के सिवा विदेशों में निर्वासित कई भारतीयों का भी ज़िक्र किया है। इन अंशों को पढ़कर निर्वासितों के संबंध में कई ज्ञातव्य बातें मालूम होती हैं । ऐसे स्थल मनोरंजक हैं । राजा महेन्द्रप्रताप, श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल, मौलवी उबैदुल्ला, मौलवी बरकतउल्ला, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, एम० एन. राय और चम्पक रमन पिल्ले के विचारों और उनके व्यक्तिगत जीवन की अनेक घटनाओं का विवरण प्राप्त होता है । सन् १९२७ में ब्रूसेल्स में होनेवाली पीड़ितों की कान्फरेंस में नेहरू जी शामिल हुए थे । इस कानफ़रेंस के सभापति ब्रिटेन के मज़दूर - नेता जार्ज लांसबरी थे । नेहरू जी ने जार्ज लांसबरी की राजनीति को बड़े विनोदात्मक ढंग से लिखा है। भारत की ही भाँति योरप में भी पूँजीवाद के विरुद्ध एक आन्दोलन हो रहा है । कम्यूनिस्टों का प्रचार कार्य बढ़ रहा है, इसका भी ज़िक्र किया है। इस स्तम्भ से योरप की राजनैतिक उथल-पुथल पर गहरा प्रकाश पड़ता है। रूस के भ्रमण ने तो नेहरू जी को "अध्ययन करने की एक बुनियाद दे दी ।" 1 व्यक्तिगत बातें - अंत में हम नेहरू जी की व्यक्तिगत बातों और सौजन्य- पूर्ण विचारों का बिना उल्लेख किये नहीं रह सकते । नेहरू जी ने 'अपनी कहानी' में व्यक्तिगत बातें भी लिखी हैं। जहाँ उन्होंने श्रौरों के संबंध में स्पष्टवादिता से काम लिया है, वहाँ अपने लिए भी वही रुख अख्तियार किया है। वे मुसीबतों से घबरानेवाले नहीं । संघर्षमय जीवन के वे क़ायल हैं। अपने परिवार, मालीहालत का भी यथास्थान स्पष्टता के साथ लिखा है। कुछ स्थल तो बड़े हृदयविदारक हैं, मार्मिक भावना से भरे हैं। स्वर्गीय कमला नेहरू के संबंध में कुछ अवतरण इस प्रकार हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ अपने परिवार में शान्ति और सान्त्वना मिली है । मैंने महसूस किया कि इस दिशा में मैं खुद कितना अपात्र निकला । यह सोचकर मुझे शर्म भी मालूम हुई । मैंने महसूस किया कि सन् १९२० से लेकर मेरी पत्नी ने जो उत्तम व्यवहार किया उसका मैं कितना ऋणी हूँ । स्वाभिमानी और मृदुल स्वभाव की होते हुए भी उसने न मेरी सनकों ही को बरदाश्त किया, बल्कि जब जब मुझे शान्ति और तसल्ली की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब तब वह उसने मुझे दी ।” (पृष्ठ १३०) श्रीमती कमला नेहरू के संबंध में कई स्थानों पर कुछ मार्मिक बातें लिखी गई हैं और वे करुणा से पूर्ण हैं । ऐसा जान पड़ता है कि नेहरू जी ने स्वयं ऐसे मार्मिक विषयों की उपेक्षा की है। ऐसे अवतरणों को पढ़ने से बेदना का अनुभव होता है । "मुझे पता लगा कि मेरे पिता जी और मेरे बारे में एक बहुत प्रचलित कहावत यह है कि हम हर हफ्ते अपने कपड़े पेरिस की किसी लांड्री में धुलने को भेजते थे । ... इससे ज्यादा जीव और वाहियात बात की कल्पना भी मैं नहीं कर सकता। अगर कोई इतना मूर्ख हो कि वह ऐसे झूठे बड़प्पन के लिए इस तरह की फ़िज़ूलख़र्ची करे, तो मैं समझता हूँ कि वह अव्वल दर्जे का उल्लू ही समझा जायगा ।" (पृष्ठ २५२) पं० जवाहरलाल जी ने अपने को व्यक्तिगत रूप से 'हिन्दू' और 'ब्राह्मण' घोषित किया है । यह एक मार्के की बात है । आज कल कांग्रेस के हिन्दू नेता प्रायः इस विचार के हैं कि वे अपने को 'हिन्दू' कहने और 'हिन्दूत्व' का समर्थन करने में लज्जा का अनुभव करते हैं। नेहरू जी ने 'हिन्दूत्व' की अत्यधिक प्रशंसा की है। कांग्रेस के एक नेता के लिए, फिर पंडित जवाहरलाल जी ऐसे व्यक्ति जो " ज़बर्दस्त कशमकश और मुसीबतों के वक्त में मुझे एक कश्मीरी घराने में उत्पन्न हुए हैं और जिनका रहन परिवार के लोगों में अपनी माता श्रीमती स्वरूपरानी नेहरू, श्री विजयालक्ष्मी पंडित, श्रीमती कृष्णा नेहरू और श्री रनजीत पंडित का ज़िक्र भी किया है। अपनी आर्थिक स्थिति का दिग्दर्शन भी कराया है। लोगों को यह मालूम है कि पं० मोतीलाल जी फ्रांस से कपड़ा धुलवा कर मँगवाते थे । इस संबंध में नेहरू जी ने उत्तेजना- पूर्ण और स्पष्ट विचार प्रकट किये हैं www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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