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________________ सपा [भाग पहले वे माडरेट थे, बाद को वे उग्र कांग्रेसी बन गये थे। यदाकदा मतभेद प्रकट करते हुए अपनी नीति का प्रतिअनेक स्थलों पर स्वर्गीय नेहरू जी के व्यक्तित्व पर सुन्दर पादन किया है। नेहरू जी एक युद्ध-प्रिय नेता हैं, संघर्ष प्रकाश पड़ता है। कुछ अवतरण इस प्रकार हैं- ही उनके जीवन की प्रधानता है। महात्मा जी ने जितने ___"लेकिन जहाँ मैं उनकी इज्जत करता था और उन्हें अान्दोलनों का संचालन किया, कुछ दिन बाद वे महात्मा बहुत ही चाहता था, वहाँ मैं उनसे डरता भी था। नौकर- जी की प्रेरणा या देश में मतभेद के कारण असफलता चाकर और दसरों पर बिगडते हए मैंने उन्हें देखा था। को प्राप्त हए, इस पर नेहरू जी ने अपनी स्पष्ट राय जाहिर उस समय वे बड़े भयंकर मालूम होते थे और मैं मारे डर की है । इस सम्बन्ध में महात्मा जी के कुछ विचारों से मतके कांपने लगता था।......उनका स्वभाव दर असल भेद भी जाहिर किया है। कुछ अवतरण इस प्रकार हैंभयंकर था और उनकी श्रायु के ढलते दिनों में भी "यों मजमों से मुझे परहेज़ न था, मगर उनका-सा गुस्सा मुझे किसी दूसरे में देखने को नहीं के साथ चलनेवालों का जैसा हाल होता है, यानी धक्के मिला। लेकिन खुशकिस्मती से उनमें हँसी-मज़ाक का खाना और अपने पैर कुचलवाना ये मुझे ललचाने को माद्दा बड़े ज़ोर का था और वे इरादे के बड़े पक्के थे। काफ़ी न थे।" (पृष्ठ १०) “वे अकसर कहते थे कि 'दरिद्र नारायण' के लिए ___पंडित मोतीलाल जी 'स्वराज्य-पार्टी के लीडर थे। धन चाहिए ।...मुझे यह बात पसन्द नहीं थी। क्योंकि स्वराज्य-पार्टी ने असेम्बली में अपना बहुमत कायम कर मुझे तो दरिद्रता एक घृणित चीज़ मालूम होती थी, लिया था। इस सम्बन्ध में एक स्थान पर लिखा है- जिससे लड़कर उसे उखाड़ फेंकना चाहिए, न कि उसे ___"पिता जी असेम्बली के कामों में उसी तरह तैरने बढ़ावा देना चाहिए।" (पृष्ठ २३७) लगे जैसे बत्तख़ पानी में ।" (पृष्ठ १६०) सत्याग्रह-अान्दोलन को महात्मा जी ने चौरीचौरास्वराज्य-पार्टी के साथ महामना मालवीय जी की कांड के बाद स्थगित कर दिया था। इस पर नेहरू जी नेश्नलिस्ट पार्टी का भी प्रसंग आया है। इस प्रसंग में ने अपनी दलीलों से यह ज़ाहिर किया है कि गांधी जी महामना मालवीयजी के सम्बन्ध में कई बातें लिखी हैं। ने यह गलती की थी और अपनी प्रोजस्विनी आलोचना कहीं कहीं मालवीय जी की नीति और देश-प्रेम की सुन्दर में अपना मत प्रकट किया है । इसी प्रकार अनेक स्थलों व्याख्या की गई है। कुछ अवतरण इस प्रकार है- पर महात्मा जी और उनके भक्तों की प्रशंसा भी की है। "नई नेश्नलिस्ट पार्टी अधिक माडरेट या गरम दृष्टि- सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए एक स्थान पर लिखा कोण की प्रतिनिधि थी। वह निश्चित रूप से स्वराज्य-पार्टी है-"सरदार वल्लभभाई से बढ़ कर हिन्दुस्तान में कोई से ज़्यादा सरकार की तरफ़ झुकी हुई थी।" पृष्ठ (१९३) दूसरा गांधी जी का भक्त नहीं है ।" नेहरू जी ने महात्मा "पुराने ताल्लुकात की वजह से वे कांग्रेस में ज़रूर जी की आलोचना के साथ ही अनेक स्थलों पर उनकी बने हुए थे, लेकिन उनका (मालवीय जी) दिमागी दृष्टिकोण भूरि भूरि प्रशंसा की है। उनकी सचाई, आध्यात्मिकता, लिबरलों या माडरेटों के दृष्टिकोण से ज़्यादा भिन्न न था।" और चरित्र-बल के वे कायल हैं। उदाहरणार्थ(पृष्ठ १९३) "असहयोग जनता का एक अान्दोलन था। उसका "उनकी आवाज़ की तरफ़ लोगों का ध्यान अब भी अगुश्रा था ऐसा दबंग शख्स जिसे हिन्दुस्तान के लोग जाता है, लेकिन वे जो भाषा बोलते हैं उसे अब बहुत- बड़े भक्ति-भाव से देखते थे।" (पृष्ठ ८५) से लोग न तो समझते ही हैं और न उसकी परवाह ही "गांधी जी का ज़ोर किसी किसी सवाल को बुद्धि से करते हैं।” (पृष्ठ १९५) समझने पर कभी नहीं होता था, बल्कि चरित्र-बल और महात्मा गांधी की सत्यता, ईमानदारी, अहिंसा-सम्बन्धी पवित्रता पर होता था, और उन्हें हिन्दुस्तान के लोगों को उसूलों की भी प्रशंसा और कहीं कहीं अालोचना की है। दृढ़ता और चरित्र-बल देने में आश्चर्यजनक सफलता राजनैतिक क्षेत्र में नेहरू जी ने गांधी जी की राजनीति से मिली है।" (पृष्ठ ९३) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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