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सरस्वती
कांग्रेस का इतिहास कह सकते हैं । इन चौदह-पन्द्रह वर्षों में देश की जो उन्नति हुई और जन साधारण में जागृति का जो संचार हुआ है वह राष्ट्रीय दृष्टि से इतिहास की चीज़ है । नेहरू जी ने प्रधान रूप से इस ग्रंथ में 'असहयोग', 'साम्प्रदायिकता का दौर दौरा', 'साइमन कमीशन का आगमन', 'सविनय अवज्ञा', 'यरवदा की संधि-चर्चा', 'दिल्ली का समझौता', 'गोलमेज़ कान्फरेंस', 'डोमीनियन 'स्टेट्स' और 'आज़ादी', 'भूकम्प', 'पूरब और पश्चिम में लोकतंत्र' तथा देश के भिन्न भिन्न शहरों में होनेवाले कांग्रेस के अधिवेशनों का वर्णन तथा उसके गुण-दोषों का विवेचन भले प्रकार किया है। उक्त समस्यायें अपना ऐतिहासिक महत्त्व रखती हैं। इसी लिए यह पुस्तक भी अपनी महत्ता रखती । एक ख़ास बात और है कि अभी तक राष्ट्रीय या कांग्रेस-संबंधी जो ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं उनमें प्रायः घटनाओं का क्रमपूर्वक वर्णन ही प्राप्त होता है, किन्तु 'मेरी कहानी' में घटनाओं के वर्णन के साथ ही साथ उनकी आंतरिक परिस्थितियों का अवसर के अनुसार व्यक्तिगत भी - जो चित्रण किया गया है वह बड़ा व्यापक है और वास्तविकता से परिचित कराने में सहायक होता है ।
वर्णन और आलोचना - यह पुस्तक अरसठ परिच्छेदों में समाप्त की गई है । प्रायः सभी परिच्छेदों के विषयों का प्रतिपादन वर्णनात्मक रीति से किया गया है। कुछ परिच्छेदों में विषयों का सुन्दर विवेचन भी हुआ है । ‘मज़हब क्या है', 'जेल में पशु-पक्षी', 'लिबरल दृष्टिकोण', 'डोमीनियन स्टेट्स और आज़ादी', 'अन्तर्जातीय विवाह और लिपि का प्रश्न', 'पूरब और पश्चिम में लोकतंत्र' आदि प्रकरण विवेचनात्मक ढंग से लिखे गये हैं । वर्णन और विवेचन में नेहरू जी ने ज़ोरदार भाषा में अपने विचारों को व्यक्त किया है। किसी भी विचार को घुमा-फिरा कर और विस्तार के साथ नहीं लिखा है, बरन चुस्त और दुरुस्त ढंग से वर्णन और विवेचन किया है। नेहरू जी को कई वर्षों तक आज़ादी के लिए जेलों में रहना पड़ा है, इसलिए जेल - संबंधी अपने विचारों को उन्होंने बड़ी सुन्दरता के साथ अंकित किया है साथ ही जेलों के सुधार के संबंध में कड़ी टीका टिप्पणी भी की है। 'मेरी कहानी' में विषयों और घटनाओं का वर्णन आलोचनात्मक रीति से
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[ भाग ३८
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हुआ है । यही आलोचना और टीका-टिप्पणी पुस्तक का जीवन है । इसके पढ़ने से लिबरल पार्टी, कांग्रेस-दल, कांग्रेस और सरकार का मतभेद, सरकारी रुख, साम्प्रदायिकता आदि के संबंध में बहुत-सी आन्तरिक बातों का ज्ञान हो जाता है। देश में बड़े बड़े नेता हैं । लिबरल दल के और कांग्रेस के नेताओं में मतभेद रहा है। मुस्लिम नेता भी समय समय पर अपनी नीति बदलते रहे हैं। कभी सम्प्रदायवादियों का बोलबाला हुआ, कभी अन्य दल के नेताओं का । धीरे धीरे आन्दोलनों का खात्मा होता गया और राजनैतिक क्षेत्र में नेताओं की नीति ने कठिन पहेली का रूप धारण कर लिया। पंडित जी ने 'मेरी कहानी' में राष्ट्र के ऐसे भिन्न भिन्न दलों और नेताओं की नीतियों का श्रालो. चनात्मक रूप में विश्लेषण किया है। इससे हमें उनकी नीतियों का हो पता नहीं चलता, बरन उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी जानने का मौका मिलता है । नरम से नरम और गरम से गरम नेताओं के व्यक्तित्व का आकर्षक और निर्भीक चित्रण किया गया है ।
लिवरल नेताओं में श्री गोपाल कृष्ण गोखले के शान्त स्वभाव और सहनशीलता की नेहरू जी ने प्रशंसा की है। सर तेजबहादुर सप्रू, सर पी० सी० रामस्वामी अय्यर, भूपेन्द्रनाथ वसु, सर रासविहारी घोष और महामान्य श्रीनिवास शास्त्री के संबंध में अनेक घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कई मनोरंजक बातें लिखी है। मिस्टर गोखले से एक बार भूपेन्द्रनाथ वसु से रेल में भेंट हो गई । इस घटना का ज़िक्र करते हुए नेहरू जी ने लिखा है— "वसु महोदय गोखले के पास गये और बात-चीत में पूछने लगे कि क्या मैं आपके डिब्बे में सफ़र कर सकता हूँ। यह सुनकर पहले तो गांखले कुछ चौंके, क्योंकि बसु महाशय बड़े बातूनी थे, लेकिन फिर स्वभाववश वे राजी हो गये ।" (पृष्ठ ३६ )
माननीय श्रीनिवास शास्त्री की कई स्थलों पर चर्चा की गई है। मिसेज़ बेसेन्ट की नज़रबन्दी पर श्री शास्त्री जी की नीति का ज़िक्र करते हुए लिखा है
श्री
“मुझे याद है कि नज़रबन्दी के कुछ दिन पहले तक श्रीनिवास शास्त्री के वक्तृत्वपूर्ण भाषणों को पढ़कर हम लोगों के दिल हिल जाते थे । लेकिन नज़रबन्दी से ठीक पहले या उसके बाद से श्री शास्त्री चुप हो गये ।
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