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संख्या ६]
जवाहरलाल नेहरू
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इस प्रकार भी कह सकते हैं कि उन्होंने अपनी कथा लिखने के बहाने 'देश की कथा' लिखी है। गत
आन्दोलनों में नेहरू जी का विशेष हाथ रहा है, इसलिए घटनात्रों के वर्णन में स्फूर्ति और सत्यता का सुन्दर परिचय मिलता है। महात्मा गांधी ने अपनी 'अात्मकथा' में वास्तविक रूप से अपनी ही कहानी लिखी है, किन्तु उनके लिखने का ढंग निराला है । महात्मा जी की 'अात्मकथा' एक दार्शनिक पहलू पर लिखी गई है, किन्तु नेहरू जी की 'मेरी कहानी' लिखने का ध्येय दूसरा ही है। उन्होंने इस ग्रंथ में अपने जीवन के अनुभवों के वर्णन के साथ-साथ, उस समय के आन्दोलनों से उनका मानसिक विकास कैसे हुश्रा और देशसेवा की ओर उनके विचारों की किस प्रकार पुष्टि होती गई, इसका प्रभावशाली वणन किया है। हम इसे एक प्रकार से देश के पिछले चौदह वर्षों में घटित होनेवाली घटनाओं की 'डायरी' भी कह सकते हैं। इस 'डायरी' या मेरी कहानी' में नेहरू जी ने भारत में राजनैतिक दृष्टि से क्या उथल पुथल हुए, किन किन आन्दोलनों से देश में जागृति हुई, कौन-कौन-सी घटनायों का प्रभाव भारतीय जन-समूह पर पड़ा, देश के किन किन नेताओं ने इसमें प्रमुख भाग लिया और भारत सरकार का रुख किस ओर रहा, यह सबका सब आपने बड़े अच्छे ढंग से इस पुस्तक में बताया है।
बंगाल के स्वर्गीय नेता सर रासविहारी घोष के सम्बन्ध . शैला और भाषा-ग्रंथ की रचना-शैली बड़ी मना- में एक स्थान पर उन्होंने लिखा है-"सर रासविहारी हर और रोचक है। पढ़ने में उपन्यास का-सा अानन्द घुटे हुए माडरेट माने जाते थे और खाप उन दिनों श्राता है । घटनाओं का वर्णन सिलसिलेवार होने के कारण प्रमुख तिलक-शिष्य माने जाते थे, यद्यपि पीछे जाकर वे वह एक राजनैतिक उपन्यास-सा जान पड़ता है। व्यक्तिगत कपोत की तरह कामल और माडरेटों के लिए भी अत्यधिक अनुभवों, समय समय पर होनेवाली साधारण से साधारण माडरेट हो गये।" (पृष्ठ ४७) इसके सिवा और भी घटनाओं का प्रभाव हृदय पर पड़े बिना नहीं रहता। पंक्तियाँ पठनीय हैंइससे शैली और भी आकर्षक और मनोरंजक हो गई है। मगर शौकतअली वहाँ मौजूद थे, जो अधकचरे विषय के वर्णन में विनोद, हास्य और व्यंग्य की पुट लोगों में जोश भरा करते थे।" (पृष्ठ ५९) नेहरू जी ने जगह जगह ऐसे ढंग से दी है कि रचना “अदालत में एक फटे हाल महाशय पेश किये गये सजीव हो उठी है। विनोद तो उनके संघर्षमय जीवन की जिन्होंने हलफ़िया बयान दिया कि दस्तख़त मोतीलाल जी जीवनी शक्ति है। उन्होंने स्वयं लिखा है-"......मगर के ही हैं।" (पृष्ठ १०९) ज़िन्दा रहना मेरे लिए तो प्रायः असह्य हो जाता, अगर “जिस तरह जादूगर के पिटारे में से अचानक कबूतर मेरी ज़िन्दगी में कुछ लोग हँसी मज़ाक की कुछ मात्रा न निकल पड़ते हैं, उसी तरह अाडिनेन्स वगैरह निकल डालते रहते ।" ('मेरी कहानी' पृष्ठ २५४)
पडते हैं।" (प्रथ २२६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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