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सरस्वती
[भाग ३८
उसने कांग्रेसजनों को बड़ी संख्या में व्यवस्थापक-सभाओं एक ही चीज़ बच गई है और वह है गांधी जी के शब्दों में भेजा है।
में तलवार का शासन' । तब भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने अपनी चाल चलने में ग़लती की है। उसने ग़लती की या नहीं, इसे समय ही सिद्ध करेगा। यह ठीक है कि कांग्रेस केवल
महात्माजी का दूसरा वक्तव्य चालबाजियों से होनेवाले लाभ में विश्वास नहीं करती। लाडे जेटलेंड के उत्तर में महात्मा जी ने एक उसे मालूम है कि वह साम्राज्यवाद जो भारतीयों को पीस वक्तव्य निकाला है जिसका एक आवश्यक अंश कर उनका जीवन-रस चूसता जा रहा है. केवल चालबाजियों यह हैसे नहीं हटाया जा सकता। अतः उसके प्रोग्राम में चाल में समझता हूँ कि ब्रिटिश राजनीतिज्ञों के वक्तव्य बाज़ियाँ गौण स्थान रखती हैं।
" न्याय-रहित तथा पक्षपात और खुदमुख्त्यारी की भावना से - इसके सिवा यदि कांग्रेस अाधार केवल वैधानिक नीति युक्त हैं। इसलिए मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि मैंने जो होती तो वह भी दूसरे दलों की तरह इस मौके को न शर्त रक्खी थी उसका गवर्नर लोग पूरा कर सकते थे चूकती। व्यवस्थापक-सभात्रों का प्रवेश कांग्रेस के कार्यक्रम अथवा नहीं, इस बात पर विचार करने के लिए एक पंचाका एक बहुत छोटा-सा अंग है। उससे जितना लाभ यत बैठाई जाय, जिसमें एक प्रतिनिधि ब्रिटिश सरकार का उठाया जा सकता था-अर्थात् जनवर्गतक पहुँचना और हो, एक कांग्रेस का और तीसरा उक्त दोनों प्रतिनिधियों उसे जागृत करना-वह चुनाव के समय ही उठाया जा का सम्मत व्यक्त हो। चुका है। जो और कुछ किया जा सकता है उसे कांग्रेस
'वर्तमान मन्त्रियों को कानूनन मन्त्रि-पद ग्रहण करने के विरोधी स्वयं ही करेंगे, क्योंकि बहुमतरूपी तलवार
__ का अधिकार है या नहीं', इस विषय पर भी उक्त पंचायत उनके सिर पर बराबर लटक रही है। कांग्रेस इससे आगे ही विचार करे । पहले भी ऐसी पंचायतें बैठी हैं। यदि बढ़ती यदि ह्वाइट-हाल ने अपने गवर्नरों को उस आश्वासन
ब्रिटिश सरकार मेरे इस प्रस्ताव को स्वीकार कर ले तो मैं प्रदान की आज्ञा दी होती जिसकी माँग कांग्रेसवालों ने की कांग्रेस के। यही सलाह दूंगा कि वह भी इसके लिए तैयार थी। यह नहीं हश्रा, अतः स्वभावतः कांग्रेसवाले बिना रहे । मैं चाहता हूँ, सत्य की विजय हो। किसी प्रकार की परेशानी के अपने स्थान पर डटे हैं। कांग्रेसजनों के लिए मंत्रित्व ग्रहण करना स्वयमेव कोई
भविष्य लक्ष्य या साध्य नहीं था । कांग्रेस आज भी यह विश्वास. इस प्रकार अभी इन वक्तव्यों का अन्त नहीं हुआ करती है कि जनता के हाथों में वास्तविक शक्ति तभी है और कांग्रेस और सरकार दोनों अपनी अपनी आवेगी जब ज़ोर-ज़बर्दस्ती का मुकाबिला किया जायगा। जिद पर कायम हैं। दोनों के शुभचिन्तक इस प्रयत्न और उसका यह विश्वास तब तक रहेगा जब तक साम्राज्य- में हैं कि उनके बीच एक सम्मानजनक समझौता हो वाद स्वयं ही दूसरा रास्ता नहीं पकड़ता। वह दूसरा जाय और भारत के इतिहास में एक नया पृष्ठ रास्ता पकड़ना चाहता है या नहीं, इसकी परीक्षा के लिए आरम्भ हो । परन्तु तर्कों के कटु-प्रवाह ऐसे दिन को ही भारतीय कांग्रेस कमिटी ने अपने प्रस्ताव में आश्वासन- दूर किये हुए हैं और भविष्य कांग्रेस और सरकार वाली बात जोड़ दी थी। उसने उसे अस्वीकार कर दिया. के नवोन संघर्ष से व्याप्त जान पड़ता है। ऐसी और साथ साथ बहुमत-द्वारा शासन होने के वैधानिक स्थिति में परिणाम क्या होगा, यह अभी कहा नहीं खेल को भी अस्वीकार कर दिया। उसके लिए अब केवल जा सकता । यह तो समय ही बतायेगा।
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