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________________ ५१० सरस्वती उसके स्वीकार करने से संकट रोका जा सकता था और उसके फल-स्वरूप अधिकार स्वभावतः नियम और शान्ति पूर्वक नौकरशाही के हाथ से सबसे बड़े और पूरे लोकतन्त्र के हाथ में सौंपा जा सकता था । भारत - सचिव लार्ड ज़ेटलेंड का वक्तव्य भारत-सचिव लार्ड ज़टलेंड का कहना है कि महात्मा गांधी ने कदाचित विधान को पढ़ा ही नहीं या पढ़ा है तो उन्हें हिदायतों का स्मरण ही नहीं रहा। चूँकि भारतवासी महात्मा जी की सभी बातों को सच मान लेते हैं इसलिए उन्होंने गलतफहमी दूर करने के उद्देश से एक लम्बा वक्तव्य निकाला है । उसका एक आवश्यक अंश यह है ऐसी अवस्था में यह उचित है कि ग़लतफहमी को दूर करने के लिए मैं इस बात को स्पष्ट कर दूँ कि गवर्नरों के सामने जो माँग उपस्थित की गई थी वह ऐसी माँग [ लार्ड ज़ेटलैंड ] थी जिसे विधान में संशोधन हुए बिना गवर्नर पूरा नहीं कर सकते थे । यह बात एक उदाहरण देकर समझाई जा सकती है । ऐक्ट की दफ़ा २५२ ने गवर्नरों पर कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ ख़ास ज़िम्मेदारियाँ लाद दी हैं । अल्पसंख्यकों के वैध हितों की रक्षा करना उनमें से एक ज़िम्मेदारी है । जहाँ तक इस प्रकार की किसी ज़िम्मेदारी का सवाल उठता है, गवर्नर को अपनी व्यक्तिगत निर्णय बुद्धि से यह निश्चय करना चाहिए कि क्या कारवाई की जाय । मान लीजिए कि किसी ऐसे प्रान्त में जिसमें हिन्दुओं का बहुमत है अथवा मुसलमानों का बहुमत है, मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव किया कि मुस्लिम स्कूलों अथवा हिन्दू-स्कूलों की संख्या कम कर दी जाय। ऐसा प्रस्ताव करना कानून की सीमा के अन्दर होगा, इसे वैधानिक कार्य नहीं कह सकते । विधान के अन्दर ऐसा करना सम्भव होगा, इसी कारण तो पार्लियामेंट ने संरक्षण की व्यवस्था की और गवर्नरों पर विशेष ज़िम्मेदारियाँ लादी हैं । इस मामले से यह स्पष्ट है कि अल्पसंख्यकों के वैध हितों की रक्षा का सवाल खड़ा होगा और गवर्नर अपनी व्यक्तिगत निर्णय-बुद्धि से काम लेगा । अगर गवर्नर आश्वासन दे देता तो वह इस मामले में गवर्नर अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकेगा । इससे यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि विधान के अनुसार गवर्नर आश्वासन नहीं दे सकते थे । महात्मा गांधी का यह कथन कि गवर्नर श्राश्वासन दे सकते थे, ग़लत है। ऐसे संरक्षणों की श्रावश्यकता और विस्तार के सम्बन्ध में मतभेद हो सकता है, किन्तु इस बात में सन्देह नहीं किया जा सकता कि भारत की अल्पसंख्यक जातियाँ इन संरक्षणों को बहुत महत्वपूर्ण और मूल्यवान् समझती हैं । एक भारतीय पत्र ने लिखा है कि हस्तक्षेप न करने की कांग्रेस की मंशा ठीक वैसी है जैसी कि ग्राग लगानेवाले उपद्रवकारियों की यह माँग कि उनके द्वारा प्रज्वलित की जानेवाली आग के बुझाने के लिए दमकलों का उपयोग न किया जाय । दुख है कि बहुमतवाले दल ने ६ प्रान्तों में मंत्रिपद ग्रहण करने से इनकार कर दिया है । बंगाल, पंजाब, पश्चिमोत्तर - प्रान्त, सिन्ध तथा आसाम के प्रान्तों में जहाँ कांग्रेस का बहुमत नहीं है, मंत्रिमंडल बन गये हैं और वे अपना कार्य कर रहे हैं । उन प्रान्तों में जहाँ कांग्रेस का बहुमत है अल्पमतवाले मंत्रिमंडल बनाये गये हैं । इन मंत्रियों के साथ हमारी सद्भावना है और हम उनकी www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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