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________________ संख्या १] प्रवासियों की परिस्थिति C. पड़ी है, जिसके द्वारा दोनों पक्षों को राज़ी रखने का प्रयत्न किया गया है। अब तक तीन भारतीय निर्वाचित होते थे, पर अब तीन निर्वाचित होंगे और दो मनोनीत । इस नवीन व्यवस्था से सिंह और मुदालियर का राजभक्ति का पुरस्कार मिल गया और कौंसिल में उनकी कुसी बरकरार रह गई। __ केनिया और यूगारडा की अवस्था भी दयाजनक है। यद्यपि केनिया-कौंसिल में पाँच भारतीयों को कुर्सी लोरेन्सा मार्विस के कुछ प्रवासी भारतीय । स्वामी जी हाथ में छड़ी लिये खड़े हैं।] मिली है, तो भी अल्पसंख्यक होने के कारण उनकी आवाज़ में कुछ दम दरवाज़ा मज़बूती से बन्द कर रक्खा है और उस पर यह नहीं है। केनिया की ऊँची ज़मीन श्वेताङ्गों के लिए साइन-बोर्ड' लगा रक्खा है कि इन उपनिवेशों में प्रवासी संरक्षित कर दी गई है, चाहे उन श्वेताङ्गों में कुछ भारतीयों का प्रवेश वर्जित है । श्वेताङ्ग ब्रिटिश साम्राज्य के शत्रु ही क्यों न हो ? प्रवासी मारिशस की जन-संख्या में तीन हिस्सा भारतीयों की भाइयों को यही तो सबसे बड़ा आश्चर्य है कि ब्रिटिश श्राबादी है, फिर भी राजनैतिक दृष्टि से उनका न कोई उपनिवेशों में योरप की सारी जातियाँ और एशिया मल्य है और न महत्त्व ही। जनतन्त्र के सिद्धान्त के अनुके यहूदी भी केवल श्वेताङ्ग होने के कारण समाना- सार वहाँ का शासन-सूत्र भारतीयों के हाथ में होना धिकार भागते हैं, किन्नु भारतीयों के प्रति-ब्रिटिश साम्राज्य चाहिए, किन्तु कहावत है कि "ज़रदार मर्द नाहर, घर की प्रजा होते हुए भी-केवल रङ्ग के कारण ऐसा व्यव- रहे चाहे बाहर । वे ज़र का मर्द बिल्ली, घर रहे चाहे दिल्ली। हार किया जाता है जो पग-पग पर उन्हें पराधीनता का वास्तव में हम घर में भी गुलाम हैं और बाहर भी इसी स्मरण दिलानेवाला और ग्राठ-आठ आँसू रुलानेवाला प्रकार ट्रिनीडाड, जमैका और डेमरारा की बात मत पूछिए । है। यह स्थिति स्वयं त्रिटिश साम्राज्य के हित की दृष्टि इन ब्रिटिश उपनिवेशों में भी भारतीयों की संख्या काफी से भी वाञ्छनीय नहीं है। है, लेकिन उनकी राजनैतिक स्थिति पर दृष्टि डालते ही टंगेनिका जब तक जर्मनी के अधिकार में था तब तक ददभरी ग्राह निकल पाती है। वहाँ के भारतीय सुख-शान्ति से रहते थे --उनकी कभी ब्रिटिश उपनिवेशों की देखादेखी अन्य उपनिवेशवाले कोई शिकायत नहीं सुनी गई. किन्न ब्रिटिश मंडेट में प्राते भी अपने यहाँ इसी नीति का अवलम्बन करने लगे हैं। हो टंगेनिका के प्रवासी भारतीयों ने हाय-तोबा मचाना शुरू मारिशस का प्रभाव मेडागास्कर पर पड़ रहा है। फ्रेंचकर दिया । आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा तो ब्रिटेन उपनिवेश होने के कारण मेडागास्कर में भारतीयों के साथ के स्वराज्य-प्राप्त उपनिवेश टहरे, वे भला प्रवासी भारतीयों अपमानजनक व्यवहार तो नहीं होता, फिर भी उनकी वह को किस खेत की मृली समझ सकते हैं ? उन्होंने अपना सम्मानपूर्ण स्थिति नहीं है जो होनी चाहिए। उधर डेम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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