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________________ . ४७० दत्तात्रयस्तेन भवन्ति लोका यः काञ्चनं गां च महीञ्च दद्यात् ॥ षष्टिवर्षसहस्राणि स्वर्गे मोदति भूमिदः । श्राच्छेत्ता चानुमन्ता च तान्येव नरके वसेत् ॥ बहुभिर्वसुधा दत्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमि: तस्य तस्य तदा फलम् ॥ स्वदत्तां परदत्तां वा यत्नाद्रक्ष युधिष्ठिर ! महीं महिमतां श्रेष्ठ दानाच्छु योनुपालनम् ॥ सरस्वती मुद्रा: राज्ञः श्रीहर्षगुप्तस्य सूनोः सद्गुणशालिनः । शासनं शिवगुप्तस्य स्थित मासवनस्थिते: || नीचे हिन्दी अनुवाद दिया जाता हैस्वाथ्य सम्पन्न महाशिवगुप्त राजा सदा माता-पिता के चरणों का ध्यान किया करते हैं । वे महेश्वर- भक्त हैं । सोमवंशी हैं और हर्षगुप्त के पुत्र हैं । वे कृत्तिवासपुत्र कार्तिकेय के समान पराक्रमशाली और विजेता के सब गुण, बुद्धि और बलसम्पन्न हैं । तरडन्शक भोगस्थित कैलासपुर गाँव में ब्राह्मणों की पूजा करके प्रत्येक ग्राम वासी को, राजकर्मचारियों का अन्य राजामात्यों को और अपने पदाश्रित सब सेवकों को यह श्राज्ञा देते हैं कि तुम लोगों को विदित हो कि सब व्यक्त और गुप्त धन सम्पत्ति और समस्त कर समेत यह गाँव (कैलासपुर ) अपनी और पुरखों की महिमा और पुण्य बढ़ाने के हेतु इस ताम्र-पत्र पर जल छोड़कर श्राषाढ़ महीने की १५वीं तिथि ( श्रमावास्या) को सूर्य ग्रहण के समय तरडन्शक स्थित कारदेव की स्त्री अलका निर्मित (बौद्ध) भिक्षुसंघ के १४ आर्य भिक्षुओं को मामा जी श्री भास्कर वर्मा के अनुरोध से दान किया । जब तक चंद्र-सूर्य रहें तब तक यह भिक्षुसंघ इस गाँव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [भाग ३८ की आमदनी भोग करे । इस गाँव में कोई राजकर्मचारी कर वसूल न कर सकेगा, न किसी प्रकार का अत्याचार कर सकेगा । कोई सैनिक या पुलिसवाला इस गाँव में प्रवेश नहीं कर सकेगा । ऐसा जान कर सब लोग गाँव की सब प्रकार की आमदनी श्रानन्दपूर्वक भिक्षुसंघ को दिया करें । भविष्य अधिकारियों को बताया जाता है कि जो भूमिदान करनेवाले इस दान को क़ायम रक्खेंगे वे इस लोक में प्रतिष्ठा और परलोक में स्वर्ग भोग करेंगे। जो इस दान को ज़ब्त करेंगे, हाय ऐसे नृशंस मनुष्य नरक में जायँगे । यह मनुष्य जीवन नश्वर है और लक्ष्मी चंचला है, ऐसा जानकर किस मार्ग से चलोगे, चुन लो । पिच भूमिदान सुख का कारण है और भूमिहरण दुःख का कारण है । स्वर्ग-सुख छोड़ करके कौन नरक भोगना चाहेगा ? इस सम्बन्ध में सुधीगण व्यास का यह श्लोक गाया करते हैं । यथा -- मि का प्रथम सन्तान सुवर्ण है । पृथ्वी विष्णु की कन्या है | गाय सूर्य से उत्पन्न हुई है । जो सुवर्ण, भूमि और गोदान करता है वह त्रिभुवन दान का फल लाभ करता है । भूमिदाता ६०,००० वर्ष तक स्वर्ग भोग करता है और जो दान की हुई भूमि को छीन लेता है या छीनने में सहायता करता है या सहमत होता है वह नरक में जाता है । सगर से आज तक बहुत-से राजाओं ने भूमिदान किया है । जब जो राजा भूम्यधिकारी होकर भूमि - दान कर गये हैं वे ही उसका फल पा गये हैं । हे युधिष्ठिर, स्वयं दी हुई या दूसरे की दी हुई भूमि की सदा यत्न-सहित रक्षा करते रहो । किसी की ज़मीन छीन कर दान करने की पेक्षा दान की हुई भूमि की रक्षा करना अधिक पुण्यजनक है। www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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