SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 477
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सख्या ५] . कलिंग युद्ध की एक रात कुछ समय गुज़र जाता है । अँधेरे में युद्धजित आता (पहली बार वसन्तकुमार को देखता है। अरे हुआ दिखाई देता है। (अपना कम्बल उतार कर हाथ - तुम सो रहे हो ? कपड़े भी नहीं उतारे। यह तो ठीक घोने लगता है। नहीं। दिया भी जलता छोड दिया।) युद्ध जित–वसन्तकुमार, अभी तक तुम जाग रहे हो ? वे (ज़रा नज़दीक जाकर) वसन्त......मेरे प्यारे क्या ही अच्छे गीत होंगे जो एक सिपाही को इतनी मित्र । रात तक सोने नहीं देते । वसन्तकुमार, वह भी (पछाड़ खाकर गिरता है)......उफ़...मौत ! कितना दर्दनाक समय था । उस विचारे को एक शब्द ......वसन्त का यह अन्त ।......यह ईश्वर का भी कहने का अवसर न मिला । तारों के प्रकाश में - न्याय है—मेरी करनी का फल......... प्राचीर पर इस तरह टहल रहा था, जैसे कोई प्रेमी . और वहाँ ? स्वर्णपुर के प्राचीर पर मेरे जैसा . छिटकी हुई चाँदनी में किसी खिले हुए उपवन में ही कोई अभागा अायगा और............मेरे ईश्वर टहल रहा हो। शायद वह कोई गीत गुनगुना .........(पहरेदार गुज़रता है)। रहा था जब मृत्यु ने उसे अपनी गोद में ले लिया। पर्दा गिरता है। इस ठंडे पानी से मेरे चित्त को कुछ शान्ति __ चौथा दृश्य मिली है। अब मैं निश्चिन्त होकर सोऊँगा । वसन्त- (स्वर्णपुर के प्राचीर पर सुदक्ष का निर्जीव शरीर कुमार, नींद भी क्या प्यारी चीज़ है, जो सब ठण्डा पड़ा है। कुछ देर बाद वीरसेन अाकर सीटी चिन्ताओं को समेट लेती है ? बजाता है...ज़रा रुक कर फिर सीटी बजाता है। चारों . (पहरेदार गुज़रता है) ओर निस्तब्धता का राज्य है ।* . अब यह दिया बुझा देना चाहिए । मुझे इसकी पर्दा गिरता है । . . कोई आवश्यकता नहीं है और तुम्हें अब सो जाना चाहिए। * जान ड्रिंकवाटर के एक नाटक के आधार पर। . आँसू की माला TT . लेखक, श्रीयुत श्यामनारायण पाण्डेय साहित्यरत्न संमृति में पग पग पर दुख है। मृत्यु-अंक में सुख है। रजत-करों के झीने पट से अलमल अंग छिपाया। वह विनाश-मुख के सम्मुख है। तारक-हार पिन्हा रजनी को रिमझिम रस बरसाया। मृत्यु-अंक में सुख है। निरिणी के निर्मल जल में धो धो बदन नहाया । कहाँ इन्दु वह राहु-विमुख है। पहनाती सेवा-रत कमला नव मणियों की माला। सरस्वती पोती आसव से भर प्याला पर प्याला । मृत्यु-अंक में सुख है॥ भीनी सुरभि उठी गुलाब की मधप हए मतवाले। स्वगे-चरण पर जननी के वैभव की यह मधुशाला। नवल पँखुरियों के स्वागत में नाच, गान, मधु प्याले । निधन और उसका भी रुख है। बेसुध रंगरलियाँ आये वन वन से मिलनेवाले। .. मृत्यु-अंक में सुख है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy