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________________ संख्या ५] मडेरा REAK ___ यह बतलाना आवश्यक है कि मडेरा में कई ज्वालामुखी पहाड़ हैं। इनमें से बहत-से बुझ गये हैं। अब भी किसी से लावा निकलता रहता है, इसे ठीक नहीं कह सकता। पर बुझे हुए ज्वालामुखी पहाड़ों के दो फल हुए हैं। एक तो पर्वत के फट जाने से पानी निकल पाया है। ऐसे. पानी से भरे हुए खंदक झील की तरह दिखलाई देते हैं । दूसरे ऐसे स्थान है, जहाँ पानी नहीं निकला है और वे पर्वतों के भीतर बसने योग्य हैं। ज्वालामुखी पर्वतों के इन बन्दकों में हज़ारों मनुष्य बसे हुए हैं और खेती करते हैं । ज्वालामुखी पर्वत के पाम की भमि अत्यन्त उपजाऊ होती है । इसी लिए कृपक ऐसे स्थानों से अधिक लाभ उठाते हैं । मडेरा में ऐसे स्थानों पर अालू और प्याज़ खुब बोये जाते हैं और उनकी पैदावार भी अच्छी होती है। ___ मडेरा को यदि हम अटलांटिक महासागर का फूल कहें तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं। प्रकृति का दान तो इसे मिला ही है, पर मनुष्य ने भी इसकी कृत्रिम शोभा बढ़ाने में कोई कमी नहीं की है । सुन्दर मकानों और सड़कों से फिन्चल नगर में फूलों का बाजार] द्वीप भरा हुआ है। यद्यपि धन यहाँ बहुत मात्रा में नहीं है, फिर भी यह द्वीप खुशहाल कहा लादना था वह पब लद चुका था। जहाज़ का पहला भौंपा जा सकता है। फन्चल अटलांटिक का एक व्यापारिक केन्द्र हुअा और यात्रियों को यह सूचना मिल गई कि अव थोड़ी है । योरप, अफ्रीका, जिब्राल्टर, पश्चिमीय द्वीपपुञ्ज तथा देर में जहाज़ छुटनेवाला है । कुछ समय पश्चात् जहाज़ दक्षिणी अमेरिका, इन सभी स्थानों से जहाज़ों का अाना- की नीचे लटकनेवाली सीढ़ियाँ खींच ली गइ और अन्तिम जाना लगा रहता है। यदि इन जहाज़ों का आना-जाना न भोपे के साथ जहाज़ में स्पन्दन या गया। अन्चल सूर्य की हो तो मडेरा दो दिन के भीतर एक अत्यन्त निर्धन द्वीप रोशनी से प्रकाशित था। देखते ही देखते लताओं और बन जाय । इसका सारा व्यापार और उद्योग निर्यात पर फूलों से श्रावृतान्चल के चमकीले भकान लुप्त हो गये ही निभर है। ___ और केवल विशाल उत्तुङ्ग काली पहाड़ी ही दूर से दिखजहाज़ का ठहरे बहुत देर हो चुकी थी। जो माल लाई देने लगी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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