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________________ ४४४ सरस्वती [फ़ुन्चल नगर की पुरानी बस्ती में दैनिक जीवन का एक दृश्य, पथरीली सड़कें ध्यान देने योग्य है । ] के शरीरों को मन्द मन्द स्पर्श करती है। इसलिए एक ही समय धूप और आर्द्रता दोनों का ग्रानन्द अनुभव कर बड़ा सुख प्रतीत होता है । जल-क्रीड़ा के अन्यान्य साधन हैं। लोग उठती हुई लहरों में स्नान करते तथा तैरते हैं । कुछ लोग छोटीछोटी डोंगियों के द्वारा दूर तक निकल जाते हैं और ऊँचीऊँची लहरों पर भी खेने का अभ्यास करते हैं । पर मडेरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ एक में विशेष बात देखने में ग्राई । यहाँ स्त्री-पुरुष एक विचित्र काढ के फट्टों से ही नौका का काम निकालते हैं । इस नौका का आकार और प्रकार अद्भुत है । काठ के दो लम्बे-लम्बे टुकड़ों पर तीन बेड़े टुकड़े लगे होते हैं । बीचवाले बेड़े तख़्ते पर बैठकर एक पतवार के सहारे लोग इसे समुद्र में चलाते हैं । समुद्र की लहरों के साथ यह उठता और गिरता है । इसके डूबने का ख़तरा नहीं होता और न नौकाओं की भाँति उलटने का । मडेरा के तट पर मैंने कई नर-नारियों को इस प्रकार जल क्रीड़ा करते देखा। सभी प्रसन्न और मस्ती में डूबे हुए थे । इस बात के कहने की आवश्यकता नहीं कि सभी द्वीपों के किनारे मछली मारने के लिए अच्छे स्थान समझे जाते हैं । जहाँ तट ऊँचे-ऊँचे चट्टानों से घिरा रहता है, वहाँ मछली मारने में सुविधा नहीं होती, पर समतल तट पर यह व्यवसाय अच्छी तरह चलता है । कुन्चल नगर से थोड़ी दूर पश्चिम की ओर एक ऐसा ही स्थान है जिसका नाम 'कमारा दे लोबस' है । यहाँ पहाड़ी और समुद्र के बीच थोड़ी सी भूमि समतल मिलती है। पहाड़ी को काट-काट कर मकानों की श्रेणियाँ बनी हैं। इनमें मछुए लोग रहते हैं और अपना व्यापार चलाते हैं। तट पर सैकड़ों छोटीछोटी नौकायें पड़ी रहती है। इन्हीं में बैठकर बड़ी फुर्ती के साथ मछुए लोग समुद्र में चले जाते हैं और मछलियों का शिकार करते हैं । कमारा दे लोक्स में मछलियों के सुखाने और नमक लगा कर डिब्बे में भरने के कारखाने हैं । इन्हीं कारखानों से तैयार की हुई मछलियाँ मडेरा के अन्य भागों में तथा बाहर भेजी जाती हैं। भारत के लोग अपने मल्लाहों की अवस्था से यदि इन विदेशी मछुत्रों की तुलना करें तो उन्हें ज़मीन और आसमान का फर्क मालूम होगा। भारत के मल्लाह दीनता की मूर्ति हैं। ठीक इसके उलटे विदेशी मल्लाह सम्पन्न और खुशहाल होते हैं । उनके रहने के लिए, झोपड़ियाँ नहीं, बरन साफ़-सुथरे पक्के मकान होते हैं, जिनमें राम के सभी सामान मौजूद रहते हैं। दिन भर जल और धूप में शरीर को पीड़ित करने के बाद यदि भारत के मल्लाह को पेट भर अन्न मिल जाय तो बहुत है, पर विदेश के मल्लाहों के पास बँगले और मोटर हैं, जिनकी कल्पना यहाँ के कम लोग कर सकते हैं । www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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