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________________ संख्या ५] मडेरा ४४१ + + इन यात्राओं में भोजन आदि की बड़ी सुविधा रहती है और जहाज़ की शायद ही कोई ऐसी महिला रही होगी जिसने यात्री भी सैर के भाव से अटलांटिक महासागर के द्वीपों फलों का एक गुलदस्ता न खरीदा। तथा दक्षिण-अमेरिका के अवलोकनार्थ बाहर निकलते जहाज़ के 'डाइनिङ्ग-हाल' में फूलों की खूब रौनक थी। हैं। मडेरा के पास एजोरेन-द्वीप-समूह है, जिसे देखने के फुन्चल शहर साफ़-सुथरा है। सडके प्रायः पतली लिए पोर्चुगीज़ जहाज़ मिलते हैं और दो-एक दिन के और पथरीली हैं। पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े लोगों के भीतर इन द्वीपों की सैर हो जाती है । मडेरा के तट से ही आने जाने से चिकने हो गये हैं। इन्हीं पर बेपहियों की 'पीको बारसेलास' की चोटी दिखाई देती है । यात्री इस गाड़ियाँ आसानी से चलती है । संसार में और कहीं मडेरा स्थान तक जाते हैं और यहाँ से उन्हें इस द्वीप का दक्षिणी की भाँति बैलों से जुती हुई बेपहियेदार गाड़ियाँ देखने में भाग भी देखने को मिलता है। नहीं पाती। इन गाड़ियों के पेंदे के भाग में लोहे के पत्तर जड़े होते हैं, जो बराबर प्रयोग के कारण चिकने और साफ़ रहते हैं । बाहर से आनेवाले यात्री मडेरा में इस नवीन सवारी का आनन्द अवश्य उठाते हैं । जब यात्रियों की बड़ी भीड़ हो जाती है तब इन गाड़ीवालों की बन पाती है। वे मनमाना चार्ज करते हैं और लोगों को अपने कौतुक की शान्ति के लिए रुपये देने ही पड़ते हैं। मडेरा-वासियों का जीवन प्रायः सादा है। इस द्वीप में निर्धनता भी प्रचुर रूप से है, पर भारत से उसकी कोई तुलना नहीं। जलवायु मादिल होने के कारण लोग कमीज़ और पैंट में आसानी से रह सकते हैं। वस्तुतः इसी पोशाक में यहाँ के अधिक संख्यक लोग अपने कारोबार में लगे रहते हैं । नंगे पैर भी बहुत-से लोग मिलेंगे। फेल्ट हैट और स्ट्राहैट में ही दो प्रकार के शिरोभूषण यहाँ प्रसिद्ध हैं । स्ट्राहैट का प्रचलन यहाँ अधिक है । साधारणतः मडेरा के रहनेवाले बहुत फुर्तीले और परिश्रमी नहीं होते। पोर्चुगल देश के ही श्रमजीवी यहाँ पहले लाकर बसाये गये थे । कुछ शताब्दियों में इस द्वीप की अवस्था पूर्वापेक्षा [मडेरा का एक भीख माँगनेवाला) सम्पन्न हुई, पर योरप और अमेरिका की भाँति समय और परिश्रम का मूल्य समझनेवाले यहाँ बहुत कम हैं। यही मडेरा में रंग-बिरंगे फूल खूब होते हैं, इसी लिए इसे कारण है कि यहाँ की आर्थिक अवस्था उन्नत नहीं है । 'सुमन द्वीप' कहते हैं । जहाँ तक मेरा अनुमान है भारत से योरप अाते समय पोर्टसईद में भिखमङ्गों की इस द्वीप के अतिरिक्त योरप अथवा अमेरिका में किसी काफ़ी तादाद मिली। मडेरा में भी कुछ वैसी ही अवस्था अन्य स्थल पर इतने सस्ते मूल्य पर फूल नहीं मिलते। थी। जहाँ सड़कों पर जाइए, कहीं न कहीं किसी मंगन से हमारे जहाज़ के जितने साथी थे, सभी के हाथ में फूलों का भेट अवश्य हो जायगी। कभी कभी तो यात्रियों को बड़ा एक गुच्छा था। मडेरा द्वीप पर पैर रखते ही पोर्चुगीज़ धोखा होता है । भीख माँगनेवाले पोर्चुगीज़-भाषा में याचना कन्यायें फूलों की झपोलियाँ लेकर लोगों का स्वागत करती करते हैं। उनकी भाषा न समझने के कारण बाहर से हैं। फिर कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो कम से कम दो-चार आये हुए लोग यह भी नहीं समझ पाते कि वह भीख फूलों को न ख़रीदकर हृदय-हीनता दिखलावे ? हमारे माँगनेवाला है अथवा कोई निर्धन नागरिक । फा. ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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