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________________ ४३४ - सरस्वती [भाग ३८ के कुत्ते को पकड़े। छोड़, अभी छोड़, वर्ना हड्डी-पसली ही कह रहा है। लेकिन अब क्या उपाय ? कुछ क्षण तक तोड़ दूंगा।"--यह कहकर उसने निर्दोष मेहतर का सत्कार निस्तब्धता-सी छाई रही। फिर उसने कहा-"अाप बजा भी लात-घूसे से कर दिया। आखिर था तो हरिजन, जो फ़रमाते हैं, ऐसा मालूम पड़ता है कि यह महाराज का ही सदियों से इस प्रकार के अत्याचार सहते-सहते मज़बूत हो प्रिय कुत्ता है।" गये हैं । इसलिए उसने इस अपमान को चुपचाप सह अब मेहतर को डाँटते हुए कहा-"अभी इसका लिया। गाड़ी से नीचे उतारो। यह ऐसा-वैसा कुत्ता नहीं है। सिपाही ने कुत्ते को अपने पास बड़े आदर से बैठाते यह कितने यत्न से रक्खा जाता है, यह तुझे क्या हुए कहा-"तुम ज़रा आराम करो । मैं ड्यूटी ख़त्म होते मालूम । यह ऐसे-ऐसे पौष्टिक और स्वादिष्ठ पदार्थ खाता ही तुझे गाड़ी में बैठाकर राजमहल पहुँचा दूंगा।" है जो तुझे सात जन्म में भी नसीब न हों। तुम लोगों में ____ पीछे से एक हेड सिपाही ने उपर्युक्त कथन सुना। अक्ल नहीं है। अक्ल का दिवाला निकल गया है । यदि वह बिगड़कर बोला-"बड़ा लाट साहब का बच्चा है न, यह बात न होती तो फिर यह काम ही क्यों करते ?" जो इसको गाड़ी में बैठा कर ले जायगा । गधा कहीं का। भीड़ में से फिर कोई बोल उठा-"अापका कथन अक्षरशः रास्ते के कुत्ते से तेरा क्या सम्बन्ध ? पुलिसवालों का क्या सत्य है । है तो आखिरकार बेचारा मेहतर । इसमें इतनी कानून है, जानता नहीं अहमक !” अक्ल कहाँ कि पहचान सके । लेकिन आप अक्ल के ठेकेदार सिपाही ने पीछे घूमकर देखा तो स्वयं जमादार होते हुए भी मेहतर से अधिक मुर्ख हैं।" । मुख सूख गया, छाती की धड़कन सबने जिस ओर से आवाज़ आई थी, क्रोधभरी ज़ोरों से चलने लगी। बड़ी दीनता से बोला-"हुजूर .. दृष्टि से देखा । उसको लक्ष्य करके जमादार साहब ने क्रोध ..'यह....."महाराज......" और तैश में आकर कहा-"तो तुम यह कहना चाहते जमादार साहब अट्टहास करते हुए बोले-"बेवकूफ़, हो कि यह साधारण कुत्ता है ?” महाराज का कुत्ता क्या कभी इतना दुबला-पतला होगा? भीड़ में से फिर किसी ने कहा-“साधारण क्या ? इसके अलावा वह अकेला रास्ते में क्यों निकलेगा ? ज़रा देखते नहीं, कुत्ते की एक-एक हड्डी तो निकल रही सोचो। साथ में नौकर-चाकर इत्यादि न होंगे ? फिर जिस है। वह देखो, उसकी दोनों आँखें अग्नि के समान कुत्ते का खाद्यपदार्थ दूध और मांस हो और जिसकी लाल हैं। दूसरे को मूर्ख बताते हो, लेकिन खुद इतनी सेवा की जाती हो, वह क्या इतना दुबला क्या हो ?" होगा?" अब जमादार को अपनी भूल ज्ञात हुई । लेकिन इस ... जमादार की बात ख़त्म होते ही उस सिपाही ने कुत्ते ग़लती की ओर जिस ढंग से जमादार का ध्यान आकर्षित के ऐसी ज़ोर से लात मारी कि वह गाड़ी के पास जा गिरा। किया गया था, वह शिष्टता के विरुद्ध था-ऐसा जमादार कुत्ता फिर गाड़ी में बन्द कर दिया गया। का ख़याल था । जमादार मेहतर की तरफ़ बढा, उसके ___गोलमाल देखकर वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई। भीड़ में दो डंडे लगाये और हुक्म दिया-'ले जाओ, जल्दीसे एक दूकानदार ने कहा-"जमादार साहब, अाँख के जल्दी गाड़ी हाँको । आँखें फूट गई हैं ? यह पागल अन्धे तो नहीं हो, यह कुत्ता ऐसी-वैसी ख़राब जाति का कुत्ता है।" इसके बाद पहरेदार से कहा-“देखो, इस नहीं है । इसका चमड़ा कितना मुलायम है, इसकी देह मेहतर को तीन दिन कैद रक्खो । पागल कुत्ते को गाड़ी कितनी साफ़ है, क्या साधारण कुत्ते जो रास्ते में से छोड़ देने की सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए, वर्ना इन इधर-उधर मारे-मारे फिरते हैं, उनका बदन कभी इतना लोगों का साहस बढ़ जायगा।" परिष्कृत होता है ?" देखते-देखते कुत्ते की गाड़ी वहां से गायब हो जमादार के मन में संदेह उत्पन्न हुआ और उसको गई। इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया कि यह आदमी सच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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