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________________ ४३२ सरस्वती [ भाग ३८ केवल मुट्ठी भर अन्न-कहाँ है पुरुषों में अभिमान यहाँ ? केवल मुट्ठी भर अन्न--कहाँ है भले-बुरे का ज्ञान यहाँ ? केवल मुट्ठी भर अन्न-यही है बस अपना ईमान यहाँ अपने बोझ से दबे हुए मानव को नहीं विराम यहाँ, सुख-दुख की संकरी सीमा में अस्तित्व बना नाकाम यहाँ; बनने की इच्छा का हमने देखा मिटना परिणाम यहाँ; अभिलाषाओं की सुबह यहाँ, असफलताओं की शाम यहाँ ! अपनी निर्मित सीमाओं में हमको कितना विश्वास अरे ! यह किस अशान्ति का रुदन यहाँ किस पागलपन का हास अरे! किस सूनेपन में मिल जाते जीवन के विफल प्रयास अरे ! क्यों आज शक्ति की प्यास प्रबल बन गई रक्त की प्यास अरे ! अपने पन में लय होकर भी अपने से कितनी दूर अरे ! हम आज भिखारी बने हुए निज गुरुता से भरपूर अरे ! अपनी ही असफलताओं के बन्धन से हम मजबूर अरे ! अपनी दीवारों से दब कर हम हो जाते हैं चूर अरे!. पथभ्रष्ट हमें कर चुकी आज . अपनी अनियन्त्रित चाल अरे ! डस रही व्याल बनकर हमको यह अपनी ही जयमाल अरे! हम प्रतिपल बुनते रहते हैं अपने विनाश का जाल अरे! बन गये कल के हम स्वामी है अब अपने ही काल अरे! (८) अम्बर को नत करनेवाला अपना अभिमान मुका न सका, सागर को पी जानेवाला आँखों की प्यास बुझा न सका, व्यापक असीम रचनेवाला निज सीमा स्वयम मिटा न सका, अपनी भूलों की दुनिया में सुख-दुख का ज्ञान भुला न सका! अपनी आहों में संसृत के क्रन्दन का स्वर तू भर न सका, अपने सुख की प्रतिछाया में जग को सुखमय तू कर न सका, यह है कैसा अभिशाप अरे क्षमता रख कर तू तर न सका ? - तू जान न पाया-'जी न सका जो उसके पहले मर न सका !! 'है प्रेम-तत्त्व इस जीवन का !' यह तत्त्व न अब तक जान सका! तू दया-त्याग का मूल्य अरे अब तक न यहाँ अनुमान सका! तू अपने ही अधिकारों को अब तक न हाय पहचान सका! तू अपनी ही मानवता को अब तक हे मानव पा न सका ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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