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________________ सिन्ध का लॉइड बॅरेज और रुई की खेती . लेखक, श्रीयुत मदनमोहन नानूराम जी व्यास जनवरी १९३२ में 'लोइड बॅरेज' का उद्घाटन किया गया था। तब से गत पाँच वर्षों में सिन्ध में रुई को खेती में उसके कारण कितनी प्रगति हुई है, इसो की प्रामाणिक समीक्षा इस लेख में की गई है। RADITTER रत में रुई की खेती उतनी ही प्राचीन गई । पिछले वर्षों में इस कमिटी ने सिन्ध में अन्वेषण SPE E है, जितना कि इतिहास । पुराने और बीज-गुणन-क्रियात्रों के लिए प्रचुर धन दिया है। 9 भा ज़माने में यहाँ जितनी अच्छी रुई ब्रिटिश सिन्ध' का सम्पूर्ण क्षेत्रफल ५३,००० वर्ग MA पैदा होती थी, उसका मुकाबिला मील है और १९३१ की मर्दुमशुमारी के अनुसार इस RE अाज किसी भी देश की उत्तमोत्तम प्रान्त को जन-संख्या ९३,००,००० है, जिसमें ७३ प्रति रुई भी नहीं कर सकती। जिस शत मुसलमान हैं। रुई से ढाके की प्रसिद्ध मल मल बनाई जाती थी, समय के सिन्ध-प्रान्त के उपविभाग-इस समय सिन्ध-प्रान्त प्रवाह के साथ साथ या तो वह नष्ट हो चुकी है या उसका बम्बई प्रान्त से अलग कर दिया गया है और वह ग्राट जिलों हास हो गया है। भारत में वर्तमान समय में जो रुई पैदा में विभक्त है-१ हैदराबाद, २ थरपारकर, ३ नवाबशाह; होती है उसके अधिकांश का रेशा ४ इंच से कम है । यहाँ ये तीन जिले सिन्ध के बायें किनारे पर हैं और ये रुई की इस दिशा में उन्नति करने के लिए सबसे पहले ईस्ट खेती के प्रधान केन्द्र हैं । ४ लारकाना, ५ दादू ये दो जिले इण्डिया कंपनी ने सन् १८४० में प्रयत्न किया था। चावल की खेती के लिए उपयुक्त हैं। सिन्ध का वरेज 'इंडियन-काटन-कमिटी ने सन् १९१७-१९१९ की प्रदेश' इन पाँच ज़िलों का बनाया गया है. जिसकी सिंचाई अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि सिन्ध में उत्तम रुई की वरेज से निकाली गई नहरों से होती है । गैर-बॅरेज-प्रदेश में खेती की असफलता का एकमात्र कारण सिंचाई की बाकी तीन ज़िले हैं-६ सक्कर, ७ कराची, ८ उत्तर-सिन्धअसुविधा है। सिन्ध में लम्बे रेशेवाली रुई पैदा करने के सरहदी-ज़िला । इन जिलों की सिंचाई सिन्धु-नदी की सम्बन्ध में उसने स्पष्ट लिखा है- "यदि सिंचाई के लिए वार्षिक बाढ़ों पर निर्भर है। बारहों मास नियमित रूप से पर्याप्त जल प्राप्त होता रहे तो लॉइड बॅरेज और नहर-विभाग–भारत के भूतहमारा विश्वास है कि भारत का अन्य कोई भी प्रदेश पूर्व वाइसराय लार्ड विलिंग्डन ने १३ जनवरी १९३२ को लम्बे रेशेवाली रुई की सफलतापूर्वक खेती की जाने के 'लाइड बॅरेज' का उद्घाटन किया था। सिंचाई के उद्देश लिए इतने अधिक और प्राशाप्रद सु-अवसर नहीं रखता।" से निर्माण किये गये बांधों में यह बाँध दर्शनीय एवं महान् आगे. मालूम होगा कि सिन्ध में 'लॉइड बॅरेज' के खुल है। यह बाँध सक्कर के दरें पर सिन्धु नदी के प्रार-पार जाने से कमिटी के उपर्युक्त कथन का पूर्णतया समर्थन हो बाँधा गया है और इसके निर्माण में करीब २१ करोड गया है। रुपया खर्च हुअा है। बॅरेज में ६६ व्यास हैं। प्रत्येक उक्त कमिटी की विविध सूचनाओं के अनुसार मार्च व्यास ६० फुट का है। जल-प्रवाह का मर्यादित रखने के १९२१ में 'इण्डियन सेन्ट्रल कॉटन कमिटी' की नियुक्ति लिए प्रत्येक व्यास में बिजली से खुलने और बन्द होने. की गई थी। सन् १९२३ में 'कॉटन सेस एक्ट' के अनुसार वाले लोहे के दरवाज़े लगे हुए हैं। बांध के नीचे के उसे स्थायी संस्था का रूप दे दिया गया और रुई की खेती भाग में आने-जाने का एक पुल भी है। 'ब्रिटिश सिन्ध' और विकास के लिए धन की समुचित व्यवस्था भी कर दी की ५०,१३,००० एकड़ भूमि बॅरेज की व्यवस्था के पूर्ण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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