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________________ सरस्वती [ भाग ३८ रहेगा ही। उसे कम करने का प्रयत्न अवश्य करना . यदि सरलता और सुगमता की दृष्टि से ही 'हिन्दी याने चाहिए, परन्तु वह रहेगा अवश्य । अतः साहित्यिक भाषा हिन्दोस्तानी' शब्द का प्रयोग किया जाता है तो इसकी भी में उर्दू और हिन्दी के प्रकार में भेद रहेगा। थोड़े दिन कोई आवश्यकता नहीं। क्योंकि हिन्दी की जो परिभाषा हुए लखनऊ में होनेवाले 'हिन्दुस्तानी-एकेडेमी' के पाँचवें की जाती है उसका भी अर्थ यही है । अर्थात् जिसे उत्तर'साहित्यिक-सम्मेलन' में बोलते हुए कानपुर के मौलवी भारत की जनता आसानी से समझती है। हाँ, यदि काका अब्दुल्ला साहब ने कहा है कि 'हम इस बात को भुला नहीं साहब का हिन्दी याने हिन्दोस्तानी से अर्थ यह हो कि सकते कि मामूली बोलचाल की भाषा साहित्य-विज्ञान इन दोनों शब्दों का अर्थ एक है, क्योंकि 'हिन्दी' और श्रादि सम्बन्धी विचार व्यक्त करने की भाषा से भिन्न होती 'हिन्दुस्तानी' शब्दों की जो व्याख्या की जाती है उसमें है। इसलिए बोलचाल की भाषा को अधिक सरल कोई महान् अन्तर नहीं तो इसमें हमें कोई विशेष अापत्ति बनाने का तो प्रयत्न किया जा सकता है, पर वैज्ञानिक तथा - नहीं । सम्भवतः परिषद् के उद्देश में आये हुए 'हिन्दी साहित्यिक भाषा के सम्बन्ध में हिन्दी-उर्दू में बहुत भेद याने हिन्दोस्तानी' शब्द का यही अर्थ होगा। काका साहब पड़ेगा। भाषा का यह भेद तो तब तक रहेगा ही जब तक के भाषण में निम्न वाक्यों से यही ध्वनित होता हैमुसलमान भारतीय भाषा और संस्कृति का अपना न समझेंगे। "राष्ट्रीय हिन्दी में समस्त भाषाओं के शब्दों को कुछ स्थान यदि भारतीय साहित्य-परिषद् की ओर से एक ऐसे मिलेगा ही। हम किसी का बहिष्कार नहीं चाहते। कोश का निर्माण किया जाय, जिसमें सर्वनाम, अव्यय राष्ट्रीय शब्द किसी भी भाषा या बोली के हों, अधि आदि क्रम से समस्त प्रान्तीय भाषाओं में एक ही अर्थ में कांश लोग जिन्हें समझ सके वे सब शब्द राष्ट्रीय हैं।' प्रयुक्त होनेवाले शब्दों का संग्रह रहे तो सुगमता से करोड़ों भारतवासी जिस भाषा को आसानी से समझ राष्ट्र-भाषा के शब्दों का निर्णय हो सकता है। जो शब्द सकें ऐसी सुलभ सर्वसाधारण और स्वदेशी भाषा में हम समूचे राष्ट्र में एक अर्थ में अधिक प्रयुक्त होता है वही बोलेंगे।" राष्ट्र-भाषा का शब्द होगा। मेरा विचार है कि तब आज हमारा तो विश्वास है कि बोलचाल की भाषा और की भी अपेक्षा अधिक संस्कृत-शब्द राष्ट्र-भाषा के अंग साहित्यिक भाषा में अन्तर आवश्यक है, हेय भी नहीं । बनेंगे | बँगला आदि प्रान्तीय भाषाओं में संस्कृत-शब्दों इसमें कमी लाने का प्रयत्न करना चाहिए । इस समय तो की ही प्रचुरता है। 'हिन्दी-हिन्दुस्तानी' दोनों के पक्षपातियों को विदेशी भाषा यद्यपि कांग्रेस ने 'हिन्दी' का राष्ट्र-भाषा का रूप दिया से युद्ध करना है, अतः इस समय इस झगड़े में पड़ने से है, तथापि जानबूझकर उसके अधिवेशनों में अधिक लाभ नहीं, हानि ही है। इस समय तो सबको देश-भाषा वक्ता कठिन फ़ारसी-शब्दों का ही प्रयोग करते हैं, जिसे में सभी हिन्दुस्तानियों को शिक्षित करने का सतत प्रयत्न अधिकतर लोग नहीं समझ सकते । केवल हीं, करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि जब हिन्दुस्तान के अधिकतर मुसलमान भी उसे नहीं समझ पाते। यह मुसलमान साम्प्रदायिकता से उठकर विचार करेंगे तब वे शिकायत हमें ही नहीं, स्वयं 'हिन्दी याने हिन्दोस्तानी' के देखेंगे कि हिन्दी ही राष्ट्र-भाषा होने के योग्य है। पक्षपाती काका साहब ही लिखते हैं यदि 'हिन्दी याने हिन्दुस्तानी' शब्द हिन्दी-हिन्दु"कांग्रेस में जो भाषण हिन्दी में होते हैं उनमें फ़ारसी शब्दों स्तानी के झगड़े को कम करने में समर्थ हो जाय तो देश .. की इतनी भरमार होती है कि देहात से आनेवाले का कितना उपकार हो। परन्तु भय है कि यह इस अर्थ में प्रतिनिधियों को अँगरेज़ी और हिन्दी दोनों भाषायें तीसरा पर्याय न बने । आशा है, यह तीसरा शब्द विरोध एक-सी दुर्बोध प्रतीत होती हैं।" को शान्त करके स्वयं भी उपरत हो जायगा। . . .. . . O M Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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