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संख्या ४]
सम्पादकीय नोट
• रुपये की आय और ८,५३० लाख रुपये के व्यय का शक्कर के पनपते हुए धन्धे पर भी चुंगी बढ़ाना श्रेयस्कर अनुमान किया गया था। परन्तु अनुमान के विरुद्ध समझते हैं। ८,३५८ लाख की आमदनी और ८,५५५ लाख का खर्च नये विधान के जारी करने से सरकार के व्यय में वृद्धि अर्थात् १९७ लाख का घाटा हुअा। अगले साल के बजट हुई है और यह वृद्धि इसलिए सन्तोषप्रद नहीं है कि में ८.१८३ लाख की आय और ८.३४१ लाख के व्यय का सरकार ने उन प्रान्तों में भी नई शासन-व्यवस्था जारी अनुमान किया गया है, अर्थात् १५८ लाख के घाटे का करना उचित समझा है जो अपना व्यय-भार नहीं वहन अनुमान लगाया गया है। और इस घाटे का कारण बर्मा कर सकते। जब देश के कतिपय भाग नये शासन-विधान का पृथक्करण और नये शासन का कार्यान्वित करने का ख़र्च का सुख उपभोग करने से वञ्चित रक्खे ही गये हैं तब ये बतलाया गया है। चुंगी, इनकमटैक्स और संशोधित इनकम- प्रान्त भी उनके समर्थ होने तक उन्हीं की कोटि में रक्खे टैक्स से अगले साल क्रमशः २१ लाख, ९४० लाख और जा सकते थे। पर ऐसा नहीं किया गया और उनका व्यय२० लाख की ज्यादा प्राय होने का अनुमान किया गया है। भार दूसरे प्रान्तों के करदाताओं के सिर मढ़ दिया गया है। साथ ही अगले साल के घाटे की पूर्ति के लिए सरकार ने एक ज़माने से देश के व्यवमायी तथा अथशास्त्री कुछ चीज़ों पर टैक्स भी बढ़ा दिया है। शक्कर की चुंगी १ रु० सरकार से रुपये की विनमय दर के सम्बन्ध में अपनी ५ग्रा० से बढ़ाकर २ रुपये प्रति हन्डरवेट कर दी है। माँग उपस्थित किये हुए हैं, पर सरकार अपने ही निश्चय चाँदी की चुंगी २ थाना प्रतिऔंस से बढ़ाकर ३ अाना पर अटल है। रेल और डाक के विभागों में सरकार को प्रति औंस कर दी है। चालीस तोला तक के पासलों अाशा से अधिक लाभ हुअा है, पर वह रेलवे-भाड़े तथा पर ४ अाने का टिकट लगा करेगा । अभी तक काड आदि के मूल्य में कमी करने को तैयार नहीं है । २० तोले तक के पासलों पर २ पाने का ही टिकट गत वप बजट में ग्राम-सुधार के लिए दो करोड़ रुपये लगता था।
मंज़र किये गये थे। इस बप उसकी भी व्यवस्था नहीं की गई अाश्चर्य है कि मन्दी के पिछले वर्षों में तो बजट में है। अर्थात् इस सिलसिले में जो कुछ काम तथा धन व्यय बचत होती रही, परन्तु अब जब अथ-सदस्य के कथना- किया गया है वह सबका सब बेकार गया। भारतीय ग्रामों के नुसार आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है, बजट में घाटा हो लिए इससे अधिक दुर्भाग्य की क्या बात हो सकती है ? रहा है और इसके होते हुए भी सैनिक व्यय में वृद्धि की यह सच है कि जिस पैमाने पर सरकार में इस महत् कार्य : गई है । गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष २ करोड़ रुपया सैनिक को उठाया था उससे ग्रामों का, यदि वह दो-चार वप तक व्यय की मद में अधिक ख़च करने की व्यवस्था की गई है। जारी रहता ती, बहुत कुछ हित हो जाता । और चाहे जो यह कितने दुख की बात है कि भारत जैसा दरिद्र देश इस हो, इस साल का नया बजट जैसा चाहिए, न तो सन्तोषमद में अपनी आय का ६३ फीसदी व्यय करे जब कि प्रद है, न अाशावर्द्धक ही है। और यद्यपि इसका असेम्बली ब्रिटेन जैसा समृद्ध देश केवल १५ फ्री सदी व्यय करे ! में ज़ोरों से विरोध किया गया है, तथापि उसकी सुनयही नहीं, साम्राज्य के दूसरे देश जैसे कनाडा ९ फी सदी वाई नहीं हुई है।
और आस्ट्रेलिया ४ फी सदी इस मद में व्यय करते हैं ! इधर भारत की आथिक अवस्था का क्या कहना ! उदाह
भारतीय किसानों का ऋण-भार . रण के लिए एक इसी बात को लीजिए । ब्रिटेन में रुपया भारतीय किसानों की दरिद्रता की काई थाह नहीं है। जमा करनेवालों की कुल रकम १९३६ में ५,७५,००,००, एक युग से उनकी दरिद्रता की गाथा इस देश में गाई जा ००० रुपये के लगभग थी। इधर ब्रिटेन की अपेक्षा बहुत रही है, परन्तु तर्क-वितकों के माया-जाल के नीचे उसका अधिक अावादी के भारत में वही रकम कुल ६,७०,००, भेद बराबर दबा रहा। अब इधर कुछ समय से उसकी ००० रुपया थी। परन्तु हमारे उदाराशय अर्थमंत्री का जाँच-पड़ताल की ओर लोगों का ध्यान विशेष रूप से ध्यान इस ओर नहीं है और वे आय बढ़ाने के उद्देश से आकृष्ट हुआ है, अतएव सारी परिस्थिति पर समुचित
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