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________________ सख्या ४] सम्पादकीय नोट सदस्यों की संख्या ५० लाख और उसके बाद २० लाख मिस्र का एक पाठ कम हो गई। कई धर्म-विरोधी संस्थायें टूट-फूट रही हैं। मिस्र को ब्रिटेन ने अभी हाल में स्वाधीनता प्रदान 'कमिसरियत आव एजुकेशन' ने कई प्रान्तों में ५ धर्म की है और इसी अल्पकाल में उसका रंग-ढंग कुछ विरोधी अजायबघर बन्द कर दिये हैं। इसी तरह कोमसो- का कुछ हो गया है। वहाँ राष्ट्र के संगठन का जो विराट मोल ने देश में धर्म-विरोधी प्रचार बन्द कर दिया है। आयोजन छेड़ दिया गया है वह तो है ही, इसके नये विधान में धार्मिक स्वतन्त्रता मिलने से चर्गों में नया सिवा वह एक स्वाधीन राष्ट्र के स्वाभिमान का परिचय युग आ गया है। नये शासन-विधान में भाषण, धर्म और भी देने लगा है। जहाँ उसके लिए यह गौरव की बात धर्म-विरोध करने, जलूस निकालने, प्रदर्शन करने आदि है. वहाँ उसने अपनी इस परिवर्तित स्थिति से एक यह की पूरी स्वतन्त्रता दी गई है। नई बात प्रकट की है कि उसका अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ गया है । मैंचेस्टर चेम्बर अाफ़ कामस की चीन की सौम्य नीति १९३६ की जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है उससे प्रकट होता चीन की 'कुओमिटङ्ग' नाम की राजनैतिक संस्था एक है कि मैंचेस्टर का व्यापार मिस्र में बढ़ गया है। रिपोर्ट में मुसंगठित संस्था है। अभी हाल में नानकिग में इसकी इस बात की अाशा प्रकट की गई है कि इस नई परिस्थिति केन्द्रीय कार्य-कारिणी समिति की एक प्रारम्भिक बैठक हुई से मिस्र में शान्ति और व्यवस्था कायम होगी जिससे दोनों थी। इसमें एक प्रस्ताव-द्वारा नानकिंग की राष्ट्रीय सरकार देशों के बीच का व्यापार और भी उन्नत हो जायगा। की इस नीति का समर्थन किया गया है कि जापान से संघर्ष तब तो यह बात उन प्रौद्योगिक राष्ट्रों को एक सबक देती न होने पावे और देश के बगवादी दवा दिये जायँ । इससे है जिनकी अधीनता में संसार के कतिपय राष्ट्र स्वाधीन , भी प्रकट होता है कि राष्ट्रीय सरकार के प्रधान चाँग--शेक होने के लिए यत्नवान है। क्या ही अच्छा होता यदि ऐसे की नीति का चीनौ-राष्ट्र पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। अब राष्ट्र इस बात से कुछ शिक्षा ग्रहण करते और संसार की तक इन्होंने जापान के संघर्षों को बार-बार बचाया है, मुख-शान्ति के लिए पराधीन राष्ट्रों को मिस्र की भांति साथ ही विद्रोही वर्गवादियों तथा जापान के पि? उत्तर- स्वाधीन कर देते। पश्चिमी चीन के विद्रोही मंगोलों का भी दृढ़ता से सामना किया है। यह इन्दी का प्रयत्न रहा है कि जापान अपनी निर्वाचन का परिणाम छीना-झपटी की नीति में उतनी सफलता नहीं प्राप्त कर नये सुधारों के अनुसार प्रांतीय असे-वलियों का हाल, सका और न चीन के विद्रोही राष्ट्रीय सरकार को ही पराभूत में जो निवाचन हुआ है वह अपने ढङ्ग का जैसा अभूतपूर्व कर सके। ऐसी दशा में यदि जापान भी जैसा कि उसके हुआ है, वैसी ही अभूतपूर्व विजय भी कांग्रेस को उसमें वैदेशिक मंत्री सैतो ने अभी हाल में कहा है, चीन के साथ मिली है। इस निर्वाचन में वोट देने का अधिकार तीन पड़ोसी का धम वर्तना शुरू करेगा तो चीन की राष्ट्रीय करोड़ आदमियों को था और उन्हें प्रान्तीय असेम्बलयों सरकार भी विद्रोही प्रांतों को सरलता से अपनी अधीनता के लिए कुल १५६१ सदस्य चुनने थे। इनके सिवा में ले आ सकेगी और उस दशा में विदेशी राष्ट्रों से उसके प्रान्तीय कौंसिलों के लिए २६० सदस्य अलग निर्वाचित " सम्मानपूर्ण समझौते भी हो जा सकेंगे। यदि चीन यह करने थे। इस प्रकार १८२१ सदस्यों का निर्वाचन था । स्थिति प्राप्त कर ले तो उससे चीन की प्रतिपत्ति बढ जाय इनके सिवा २४ सदस्य पिछड़ी जातियों के लिए और थे.. और उसे भी संसार के राष्ट्रों के बीच उचित स्थान प्राप्त जिन्हें सरकार नामज़द करेगी। वास्तव में यह निर्वाचन हो जाय। परन्तु चीन की वतमान सौम्य नीति क्या अपने ढंग का पहला था, इसी लिए इसमें कांग्रेस ने भी. साम्राज्यवादी राष्ट्रों के आगे कारगर हो सकेगी ? इसका बड़े उत्साह के साथ भाग लिया और उसने १५८५ स्थानों 'हाँ' में उत्तर देना कठिन है। में से ८२५ स्थानों के लिए अपने उम्मेदवार खड़े किये थे, जिनमें से ७११ स्थान उसने जीत लिये । इनके सिवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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