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सरस्वती
[भाग ३७
मैं सकुशल चला ले जाऊँगा । जैक्सन बीस घरों की बस्ती श्रीमती नाइट जो रंगून में आधे दर्जन नौकरों से घिरी थी । होटल सामने था, जिसमें इतनी ही सुविधा थी कि रहती थीं, वहाँ घर का सारा कामकाज खुद करती थीं। छप्पर के नीचे रात कट सकती थी। विचार कर मिस्टर बँगला निहायत उम्दा था। बाग़ीचा भी विविध प्रकार के नाइट ने डुलक्का जाना तय किया और मोटर चलाने का फूलों से सुशोभित था। भाजी तथा फल के पेड़ भी लगा काम उस आदमी को सौंपा । वह बेशक मोटर चलाने में रक्खे थे। मर्ग-बतखें भी पली हुई थीं। मदद के लिए प्रवीण था। गीली चिकनी मिट्टी में चक्के फिसल रहे थे। एक लड़की दो-चार घंटे को श्रा जाया करती थी। एक जान पड़ता था कि नाव पर हैं । मुझे तो इस तरह का आदमी बागीचा गोड़ने के लिए हफ्ते में एक रोज़ चार पहले कभी अनुभव नहीं हुअा था, इसलिए पग पग पर घंटे के लिए आता था। उनको इतना काम करते हुए यही जान पड़ता था कि अब उलटे तब उलटे । तीन-चार देखकर मुझे दंग होना पड़ा। मील इस तरह कलेजे पर हाथ रक्खे जाने पर एक ऐसी पचमढ़ी वगैरह की तरह टूवूम्बा एक पहाड़ी पर बसा जगह आई, जहाँ ढलुत्रा होने की वजह से पानी इकट्ठा हुअा है, जो दो हज़ार फुट ऊँची है। यहाँ अधिकतर हो गया था और ज़मीन इतनी गल गई थी कि मोटर के अवकाशप्राप्त पुरुष बसे हुए हैं। बस्ती २५,००० मनुष्यों पिछले चक्के आधे धंस गये और फड़फड़ाने लगे। यह की हो गई है। टूवम्बा पहाड़ी के नीचे को डार्लिङ्ग तय हुआ कि उतरकर मोटर ठेला जाय । इतने में एक डाउन्स नाम की ज़मीन बड़ी उपजाऊ समझी जाती दूसरा मोटर आता दिखा । भाग्यवश वह मिस्टर नाइट के है। यहाँ छोटे छोटे बहुत-से फ़ार्म हैं । इन्हीं के कारण मैनेजर का था, जिसमें दो आदमी और थे। उन लोगों आबादी ज़्यादा है, जिसकी वजह से यहाँ दूकानों का ने उतरकर किसी तरह ठेल-ठाल कर मोटर उस बोगदे के अच्छा जमघट है। सिनेमा-थियेटर भी बहुत से हैं। बाहर निकाला और हमारे मोटर की मदद से उनकी गाड़ी आस्ट्रेलिया में पहले-पहल मुझे यही जगह शहर-सा भी पार हुई । डुलक्का पहुँचते पहुँचते सात बज गये। लगी । शहर भर में सड़कें उम्दा बनी हुई हैं। सारा
मिस्टर नाइट का अपना घर टूवम्बा में है, जो डुलक्का शहर बँगलों का बना हुअा है और हर एक बँगले में से १५० मील और ब्रिसबेन से ७० मील इस तरफ़ है। अपनी फुलवाड़ी है, जिसे विविध फूलों से सजाने में हर मिस्टर नाइट को कुछ आवश्यकीय काम होने की वजह से कोई दिलचस्पी रखता है । पहाड़ी के ऊपर से घाटियों का दो रोज़ डुलक्का में रुकना था। मैंने तय किया कि मैं रेल से अनुपम दृश्य देखने में आता है। दूसरे दिन टूवृम्बा चला जाऊँ, जहाँ मिस्टर नाइट दो दिन आस्ट्रेलिया में जल की कमी का मैंने ऊपर ज़िक्र के बाद आ जायेंगे, क्योंकि डुलक्का में सिर्फ दस घर की किया है । बरसात के पानी का पूरा लाभ उठाने के लिए बस्ती थी और ठहरने का अच्छा प्रबन्ध नहीं था। सुबह सारे घर टीन से छाये हुए हैं । बारिश का पानी टीन पर सात बजे रेलगाड़ी जाती थी और मैं उस पर सवार से लुढ़ककर पनारों में आता है और पनारों का पानी हुआ । उसमें सिर्फ दो डिब्बे थे और वह हर स्टेशन पर बटोरने के लिए हर एक घर में बड़े बड़े हौज़ बने हुए ठहरती थी। आखिरकार २ बजे टूम्बा पहुँचा। हैं । टूवम्बों में पानी का समुचित प्रबन्ध है, तो भी इस
मिस्टर नाइट ने अपनी पत्नी को मेरे आने की सूचना तरह के हौज़ प्रायः सब घरों में हैं और उनका पानी काम दे दी थी। वे टूवम्बा-स्टेशन पर आकर मुझसे मिलीं में लाया जाता है। और मुझे अपने घर पर ही ठहरने के लिए विवश किया।
[अगले अङ्क में समाप्य
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