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________________ ३० सरस्वती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ भाग ३८ sa ca - aa के लिए चला गया और पीछे से हम लोग चक्की लगा दी जाती है, जो पानी खींच कर हौज़ में भरा भी पहुँच गये । डाक का काम समाप्त होने पर हम लोग फिर उड़े । न्यूकैसल वाटर्स और नेटडाउन्स में ज़रा ज़रा देर रुककर डाक दे लेकर फ़ौरन उड़ते हुए केमोवील श्राये ! भोजन का सामान यहाँ तैयार था । यहाँ कुछ घरों की एक बस्ती है। गाय, बैल, घोड़े, बकरी, भेड़ पालकर यहाँ गुज़र होता है । यहाँ हमने क़रीब ५० घोड़ों के झुण्ड का दो गुड़सवारों को ले जाते हुए देखा। यहाँ के घुड़सवार अपनी कला में निहायत दक्ष हैं । सौ सौ जङ्गली घोड़ों के गिरोह को दो घुड़सवार जहाँ चाहते हैं, ले जाते हैं । हाथ में चाबुक रहता है। घोड़े खुले रहते हैं । जानवर यहाँ घास पर ही पलते हैं। सौ सौ या इससे कुछ कम ज़्यादा बीघों के लकड़ी के हातों में गाय, बैल, घोड़ों का घेर देते हैं। भेड़ बकरियों के लिए तार के हाते होते हैं। इन हातों में सब मवेशी स्वच्छन्द चरते हैं। बरसात बहुत कम होती है । नदी-नाले नहीं हैं। इधर-उधर पानी पड़ने पर गढ़े भर जाते हैं, जो जानवरों का पानी पीने के काम आते हैं। बरसात के न होने से या कम होने से जैसे अपने यहाँ फसल का नुकसान होता है, उसी तरह पानी न होने या गढ़ों और चारा के सूख जाने की वजह से यहाँ जानवर लाखों की संख्या में मर जाते हैं । केमावील के बाद माउंट ईसा का पड़ाव था, यहाँ जस्ता और चाँदी की खानें हैं। उनमें काम करनेवाले २५०० मनुष्यों की अच्छी-सी बस्ती हो गई है । माउंट ईसा के बाद ग्लोन कुर्री और फिर लोनग्रीच । लोनग्रीच में उतरने के समय तक अँधेरा हो गया था । एयरोड्रोम के चारों तरफ़ बत्तियों के कारण जगमग हो रहा था। बड़ी सावधानी से कप्तान ने वायुयान उतारा। मोटर खड़े थे, जिनमें बिठाकर हम लोग होटल पहुँचाये गये। लॉगरीच में अच्छा पानी निकल ग्राने से बड़ी सुविधा हो गई है । इस मुल्क में केवल बरसात की तो कमी है ही, किन्तु ज़मीन के अन्दर भी पानी नहीं है । बहुत तलाश करने पर कहीं पानी निकला भी तो वह प्रायः इतना ख़राब होता है कि मवे शियों को पिलाने के भी काम नहीं आता । पाइप गलाकर ज़मीन से पानी निकाला जाता है। कुए कहीं नहीं हैं । कदाचित् कहीं कुछ अच्छा पानी निकल आया तो हवा करती है, जहाँ से पाइप द्वारा दूर दूर तक पानी ले जाया जाता है । जहाँ-तहाँ हवा में फरफराती हुई ऐसी हवाचकियाँ वहाँ के अनन्त जङ्गली प्रदेशों में मानव - निवास का संकेत करती रहती हैं । 1 होटल में पहुँचते पहुँचते सात बज गया था । अपने कमरे में दाख़िल होने के बाद ही वेटर ने आकर कहा कि चलिए चाय तैयार है । श्राज १,३०० मील से ज़्यादा का सफ़र हुआ था। थकाई मिटाने के लिए मैं नहाने की फिक्र में था । मैंने कहा चलो, आता हूँ । नहा-धोकर कपड़े पहन नीचे उतरा । कुछ गर्मी थी । इरादा हुआ, दस मिनट बाहर टहल लूँ तो भोजन करने बैठूं । जैसे ही फाटक पर आया, वेटर ने फिर बड़ी आतुरता से कहा, भोजन तैयार है, पहले भोजन कर लीजिए तब टहलने जाइए। दूसरे मुसाफ़िर भी आ गये और हम सब भोजन करने बैठे। मैंने कप्तान से पूछा कि ऐसी जल्दी का क्या कारण है । तब मालूम हुआ कि भोजनालय यहाँ साढ़े सात बजे बन्द हो जाता है । हम लोगों के कारण नौकरों की छुट्टी में देर हो रही है। इस जगह मच्छड़ों का बड़ा ज़ोर था । दिन में मक्खियाँ भी बहुत ज्यादा रहती हैं। सुबह फिर यथासमय एयरोड्रोम पर श्राये । श्राज सफ़र का अन्तिम दिन था । वायुयान ६ बजे सुबह उड़ा। श्राढ बजे चारल्यूली पहुँचे । नाश्ते का इन्तिज़ाम वहाँ था । मोटर से शहर में ले जाकर एक अच्छे होटल में भोजन कराया गया और फिर एयरोड्रोम पर पहुँचा दिया गया। अब की रोमा शहर में वायुयान को ठहराना था । मेरे भूतपूर्व साझीदार व परम मित्र मिस्टर नाइट अवकाश प्राप्तकर आस्ट्रेलिया में या बसे हैं । उनको मैंने अपने श्रागमन की सूचना दे रक्खी थी। उन्होंने ख़बर दी कि ब्रिसबेन न जाकर मैं एक स्टेशन इसी तरफ़ रोमा में उतर जाऊँ, जहाँ वे मुझे मिलेंगे । ११ बजे वायुयान रोमा एयरोड्रोम पर उतरा। मिस्टर नाइट वहाँ खड़े थे | मिलकर एक दूसरे का बड़ी प्रसन्नता हुई । साथी मुसाफ़िरों और वायुयान संचालकों से विदा ले मिस्टर नाइट के मोटर पर श्राया और बातचीत करते हुए रोमा शहर के एक होटल में पहुँचा । आज रोमा में ही ढहरना था । मिस्टर नाइट ने यहाँ ज़मीन लेकर 'फार्म' खोल रक्खा www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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