________________
संख्या ४] '
फिलिपाइन की स्वतंत्रता
स्वतन्त्रता की शिक्षा दी है। अब फिलिपाइन के निवासी के पक्ष में हैं। मनीला के एक प्रसिद्ध वकील पित्रो ड्यरान यह समझ गये हैं कि संयुक्त राज्य उन्हें स्वतन्त्र करने को इनके प्रमुख प्रचारक हैं । इधर हाल में जापान में भी इसी तैयार है । पर क्या वे इस स्वतन्त्रता को कायम रख सकेंगे ? उद्देश से मारक्विस टोक्गवा ने 'फिलिपाइन-सोसाइटी पास ही जापान का उगता हुआ सबल राष्ट्र है, जो राज- श्राफ जापान' नामक संस्था की नींव रक्खी है। साथ ही नैतिक तथा आर्थिक कारणों से। दूसरे देशों पर पड़ासी होना भी एक बात जापान के पक्ष में है । जापान ग्राधिपत्य जमाना चाहता है। फिलिगइन-द्वीप जापान से और फिलिपाइन की संस्कृति में भी उतना भारी अन्तर काफ़ी निकट है। जापानी मेंडेटरी पलाउ नामक द्वीप से नहीं है। फिलिपाइन-द्वीप-समूह का वायुयान से केवल तीन घंटे का बहुत सम्भव है कि एक दिन फिलिपाइन पर संयुक्तरास्ता है। साथ ही यह द्वीप अावश्यकता पड़ने पर जल- राज्य के बदले जापान का झंडा फहराये। पर यह किसी सेना और वायुयानों का अड्डा बनाया जा सकता है। अभी भीषण युद्ध के बाद न होगा। जापान का व्यापारिक जाल तो अमेरिका फिलिपाइन की रक्षा का प्रबन्ध करता है और फैल जाने पर वह अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करना इसके लिए उसे २,६०,००,००० डालर खर्च करने पड़ते चाहेगा और कोई छोटा कारण भी उसे अपनी सत्ता जमाने हैं । क्या स्वतंत्र फिलिपाइन इतनी बड़ी रकम 'रक्षा' के का मौका दे सकता है। तब फिर फिलिपाइन में इतनी लिए ख़च कर सकेगा?
शक्ति न होगी कि वह जापान के सैनिक बल को रोक सके इधर जापान केवल अपना व्यापारिक जाल ही नहीं और जिस प्रकार चीन अब जापान को रोक नहीं सकता, फैला रहा है, फिलिपाइन में ऐसे विचारों के फैलाने में भी फिलिपाइन भी उसके सामने कुछ न कर सकेगा। उसका हाथ है जो फिलिपाइन को जापान का भाग बनाने
गीत
लेखक, श्रीयुत बालकृष्ण राव रजनी के उर में ज्योति-शलभ, ध्वनि के मृदु अंकुर स्पन्दन में; अंकित कर गई अमिट आशा यह नियति निराशा के मन में ।
मिल गया तृषा में शीतल जल, नीरव लय में मधुमय भाषा; . खोया था जो कल शान्ति-सुमन मिल गया विकलता के वन में ॥
स्थिर हुई काल-गति, बने एक
आगामी, आगत, विगत सभीमिल गई सरस कवि को कविता चिर-मुक्ति-मन्त्र-मय बन्धन में।
फा.४
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com