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________________ ३४० सरस्वती पढ़ते समय । और, हमारे ही क्यों, अनेक देशों के प्राचीन साहित्य के सम्बन्ध में भी यह बात उतनी ही ठीक है। I जब निर्जीव पदार्थ सजीव प्राणियों के रूप में साकार किये जाते हैं तो फिर उन्हें अपनी-अपनी कल्पना के अनुसार स्त्री या पुरुष का रूप देना भी अनिवार्य हो जाता है । और चूँकि दो व्यक्तियों की कल्पना में अन्तर हो सकता है, इसलिए इस बात के भी अनेकानेक दृष्टान्त मिल सकते हैं कि जिस वस्तु को एक देश के निवासियों ने पुरुष के रूप में साकार किया है उसी को किसी अन्य देश के निवासियों ने स्त्री का रूप प्रदान कर दिया है । हमारे देशवासियों की कल्पना में सूर्य की भाँति ही चन्द्रमा भी पुरुष है, इसलिए हम उसके लिए 'चन्द्रदेव' शब्द का व्यवहार करते हैं । परन्तु योरपवालों ने सूर्य की पुरुष के रूप में तथा चन्द्रमा की स्त्री के रूप में कल्पना की है। सूर्य प्रकाश का राजा है, तो चन्द्रमा रानी है । सूर्य के प्रकाश में जिस प्रकार पुरुषोचित प्रखरता है, प्रचण्डता है, उग्रता है, उसी प्रकार चन्द्रमा के प्रकाश में रमणी-सुलभ कोमलता है, मृदुता है, शीतलता है । फिर चन्द्रमा को देखकर हृदय में अनायास ही सौन्दर्य की एक ऐसी मूर्ति साकार हो उठती है कि हमारे देश के कविगण चन्द्रमा को पुरुष मानते हुए भी सुन्दर रमणी को चन्द्रमुखी कहने का लोभ संवरण नहीं कर सके । तत्र अगर पाश्चात्यों ने चन्द्रमा की रमणी के ही रूप में कल्पना कर ली तो आश्चर्य की क्या बात है ? शुक्र के तारे का, अपने उज्ज्वल, श्वेत प्रकाश के कारण, तारों में एक विशिष्ट स्थान है। इसी लिए योरप वालों ने शुक्र (वीनस) की एक सुन्दरतम रमणी के रूप में कल्पना की है । हमारे यहाँ शुक्राचाय राक्षसों के नीतिनिपुण गुरु हैं तो पश्चिम में वीनस सुन्दरता की देवी है। योरप के बड़े से बड़े चित्रकारों तथा मूर्तिकारों ने उसके चित्र या उसकी मूर्ति का निर्माण करने में अपनी-अपनी कला की पराकाष्ठा दिखाई है । योरपीय साहित्य में बीनस का वही स्थान है जो हमारे साहित्य में रति का । हाँ, एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि हमारी रति कामदेव की स्त्री है और उनकी वीनस पंचशर (क्यूपिड) की माता । जहाँ योरपवालों ने नदी की पिता के रूप में कल्पना की है, वहाँ हमने उसे माता मान कर अधिक भावप्रवणता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat | भाग ३८ का परिचय दिया है। रोमन लोग टाइवर को 'फादर टाइबर' कह कर सम्बोधन करते थे; अँगरेज़ लोग टेम्स को 'फादर टेम्स' कहते हैं । किन्तु इसमें कल्पना की वह सुन्दरता कहाँ है जिसका हम 'गंगा मैया' या 'जमुना मैया' कहकर परिचय देते हैं ? जिस प्रकार माता अपना मृतोपम दुध पिला कर बच्चों का लालन-पालन करती है, उसी प्रकार नदी भी अपने अमृतोपम जल से अपने तट पर बसे हुए देशों को हरा-भरा बनाकर उनके निवासियों का सन्तानवत् पालन करती है। उसके उपकारों का हम 'माता' शब्द के द्वारा जैसा सुन्दर प्रकटीकरण कर सकते हैं, वैसा क्या 'पिता' शब्द द्वारा सम्भव है ? और फिर नदी की स्त्री रूप में कल्पना करने के फलस्वरूप सरिता और सागर का संगम कैसा कवित्वपूर्ण, कैसा रसपूर्ण हो उठता है ! नदी अपने पर्वतरूपी घर से निकलती है तो कवि के शब्दों में डूबी नवयौवन के मद में, लगी झाँकने मैं बाहर, उमड़ पड़ी दीवानी मग में, भागी तोड़ फोड़कर घर । कितने वृक्ष उखाड़े मैंने, कितने गांव उजाड़ किये, प्रीतम से मिलने की धुन में कितने बसे बिगाड़ दिये । इसके बाद जब नदी सागर में जाकर मिलती है तब उसकी भी कवियों ने कैसी कैसी सुन्दर कल्पनायें की हैं ? सागर में उठनेवाले ज्वार-भाटा की विरह ज्वर के रूप में कल्पना करके एक कवि ने सरिता और सागर के मिलन का कैसा सुन्दर वर्णन किया हैकिन्तु उसासे जब भरता था, प्रीतम उसका भृतल से, हो उठती थी व्याकुल तब वह रोती थी अन्तस्तल से 1 ज्यों ज्यों चन्द्र- ज्योति बढ़ती थी, त्यों त्यों वह घबराता था, पूर्ण चन्द्र की रात विरहज्वर में उठ उठ टकराता था । देख दूर से उसे पड़ा गम्भीर विकल अवनीतल पर, गिरी गोद में जेसुध होकर प्रीतम की, कोसों चल कर । “मैं गोरी थी, वह काला था, मीठी थी, वह खारा था, किन्तु प्रेम का वह सागर था इसी लिए सबसे प्यारा था ।" - X X X इस प्रकार जिन वस्तुयों की विभिन्न देशों के निवासियों ने भिन्न-भिन्न रूप में कल्पना की है उनमें एक स्वयं 'देश' भी है । हमारे पूर्वज कह गये हैं-- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।" और उन्हीं के मार्ग का अनुसरण www.umaragyanbhandar.com
SR No.035249
Book TitleSaraswati 1937 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1937
Total Pages640
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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